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मध्य प्रदेश भवन विकास निगम में बड़ा झटका

उच्च न्यायालय ने अजय श्रीवास्तव की महाप्रबंधक की नियुक्ति को किया अयोग्य घोषित  

महाप्रबंधक पद पर आयोग्य घोषित होने के बाद प्रमुख अभियंता पद पर नियुक्ति अवैध..?

भोपाल 29 नवंबर 2025। मध्य प्रदेश भवन विकास निगम (MPBDC) की कार्यप्रणाली और नियुक्ति प्रक्रियाओं पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। माननीय उच्च न्यायालय, खंडपीठ इंदौर, ने एक महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश पारित करते हुए अजय श्रीवास्तव की संविदा नियुक्ति को अयोग्य घोषित कर दिया है। श्रीवास्तव, जो कथित तौर पर फर्जी तरीके से निगम में महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत थे, उन्हें तत्काल प्रभाव से पद से हटाने का आदेश दिया गया है।

नियमों की धज्जियां उड़ाने पर न्यायालय का हस्तक्षेप

पूरा मामला रीट याचिका क्रमांक 43124/2025 के तहतहाईकोर्ट का आदेश दायर किया गया था। याचिकाकर्ता को राहत देते हुए न्यायालय ने पाया कि अजय श्रीवास्तव की तत्कालीन महाप्रबंधक पद पर संविदा/प्रतिनियुक्ति नियमानुसार नहीं थी।
25 नवंबर, 2025 को जारी इस अंतरिम आदेश में स्पष्ट किया गया है कि अजय श्रीवास्तव अब इस पद पर कार्य नहीं कर सकते।
हमारे द्वारा पूर्व मे प्रकाशित खबर मे इस संबंध में कहा कि, ” मध्य प्रदेश भवन विकास निगम के भीतर चल रही असंवैधानिक पोस्टिंग, अनियमित नियुक्तियों और ‘हिटलरी’ निर्णयों के बारे में लिखा गया था। दुर्भाग्य से, आला अफसरों ने इन चेतावनियों को अनदेखा किया, जिसका परिणाम है कि अब मामला माननीय न्यायालय तक पहुंचा और संबंधित को न्याय मिला।”

भ्रष्टाचार पर मौन क्यों..?

यह आदेश MPBDC के शीर्ष एवं मानव संसाधन एवं प्रशासन शाखा के अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सीधे सवाल खड़े करता है। लंबे समय से निगम के आला अधिकारियों पर मनमाने तरीके से नियमों की अनदेखी कर कार्य करने के आरोप लगते रहे हैं। अजय श्रीवास्तव जैसे व्यक्ति को फर्जी तरीके से उच्च पद पर पदस्थ करना इस बात का प्रमाण है कि निगम में भ्रष्टाचार और अनियमितताएं किस स्तर तक व्याप्त हैं।

अब किसकी बारी..?

न्यायालय के इस स्पष्ट आदेश के बाद गेंद अब मध्य प्रदेश भवन विकास निगम के प्रबंध संचालक और प्रमुख सचिव, लोक निर्माण विभाग (वल्लभ भवन, भोपाल) के पाले में है।

यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या ये शीर्ष अधिकारी माननीय उच्च न्यायालय के आदेश का तत्काल और पूर्ण पालन करते हैं या फिर पूर्व की तरह ही भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हुए दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई करने से बचते हैं। इस मामले में प्रबंध संचालक और प्रमुख सचिव की आगामी कार्रवाई ही तय करेगी कि वे निगम की साख बचाना चाहते हैं या अनियमितताओं पर पर्दा डालना।