सरकार कब समझेगी कि “बड़ी GDP” का मतलब “अमीर जनता” नहीं होता?
नई दिल्ली 2 दिसबर 2025। भारत आज 4.19 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है। कागज़ों पर दुनिया की शीर्ष-5 अर्थव्यवस्थाओं में स्थान पाकर सरकार खुद को विश्व गुरु की पंक्ति में खड़ा मानने लगी है। लेकिन असल सवाल यह है कि जब औसत भारतीय की जेब में साल भर में सिर्फ 2,800–2,900 डॉलर (करीब 2.40 लाख रुपये) ही पहुँचते हैं, तो किस विकास का जश्न मनाया जा रहा है?
GDP बढ़ रही है, पर जनता की जेब क्यों खाली है?
सरकार के अपने ही आंकड़े बताते हैं कि GDP वृद्धि दर 2025-26 की दूसरी तिमाही में 8.2% , वार्षिक वास्तविक वृद्धि ~ 6.4%, Nominal GDP 2025 में लगभग $4.19 ट्रिलियन है।
यह आंकड़े कागज़ पर शानदार हैं, पर इनके समानांतर एक कड़वी सच्चाई भी है —भारत की nominal per capita income मात्र $2,820–2,880 है।
वहीं PPP आधार पर प्रति व्यक्ति आय करीब $12,100 मानी जा रही है, जो सिर्फ यह दिखाती है कि भारतीयों की क्रय शक्ति ‘सस्ती चीज़ें खरीदने लायक’ तो है, पर वास्तविक आय बढ़ नहीं रही।
सरकार कहती है कि अर्थव्यवस्था बढ़ रही है पर जनता पूछती है—क्या सिर्फ अर्थव्यवस्था को ही खाना है ? बढ़ती GDP का लाभ आखिर जनता तक क्यों नहीं पहुँच पा रहा?
यदि भारत की अर्थव्यवस्था 4 ट्रिलियन तक पहुँच गई है तो_ बेरोज़गारी क्यों रिकॉर्ड स्तर पर है?_महंगाई क्यों लगातार जनता की कमर तोड़ रही है?_ग्रामीण आय स्थिर क्यों है?_और सबसे बड़ा सवाल — GDP बढ़ने का लाभ किसकी जेब में जा रहा है?
भारत में आज शीर्ष 10% आबादी के पास 57% से ज्यादा संपत्ति_निचले वर्ग की वास्तविक आय वृद्धि लगभग स्थिर, और कृषि क्षेत्र की औसत आय अब भी दयनीय है। ऐसे में केवल GDP के आंकड़े चमकाने से देश मजबूत नहीं होता। औसत भारतीय की कमाई बढ़ाए बिना, यह विकास सिर्फ रिपोर्टों में कैद एक मृगतृष्णा है।
भारत को “अर्थव्यवस्था नहीं, आम नागरिक की आय” बढ़ाने की जरूरत है
सरकार को यदि सच में आर्थिक महाशक्ति बनने का सपना
पूरा करना है, तो_1. प्रति व्यक्ति आय में तेज़ वृद्धि 2. रोजगार सृजन पर वास्तविक ध्यान 3. ग्रामीण आय में उछाल 4. MSME सेक्टर को मजबूत समर्थन 5. शिक्षा-स्वास्थ्य में वास्तविक निवेश
भारत को ये पाँचों कदम तत्काल उठाने होंगे। केवल GDP के आंकड़ों पर आत्ममुग्धता आर्थिक सुधार नहीं होती। भारत को 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था नहीं बल्कि 20,000 डॉलर प्रति व्यक्ति आय वाला राष्ट्र बनने की दिशा चाहिए। तभी विकास जमीन पर दिखेगा, सिर्फ बजट भाषणों में नहीं।
