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कागजों में गुणवत्ता, जमीन पर घोटाला—मुरैना बायपास बना संभावित हादसे की पटकथा

मुरैना NH का हत्यारा ढांचा_प्रोजेक्ट में गुणवत्ता पर गंभीर सवाल ?

जब निगरानी सिर्फ औपचारिकता बन जाए—मुरैना बायपास का कड़वा सच

ग्वालियर- मुरैना, युग क्रांति विशेष। “लिफ़ाफ़ा देखकर मजूम का अंदाज़ा लग जाता है कि इबारत कितनी बुलंद होगी”_ जी हां, ऐसा ही कुछ माजरा मुरैना में देखने को मिला।

नेशनल हाईवे परियोजनाओं में गुणवत्ता, पारदर्शिता और सुरक्षा को लेकर किए जाने वाले सरकारी दावों की पोल मुरैना जिले में खुलकर सामने आ गई है। करीब ₹204 करोड़ की लागत से बन रहे मुरैना–अंबाह एवं पोरसा बायपास के निर्माण में ऐसी गंभीर अनियमितताएं उजागर हुई हैं, जो आने वाले समय में बड़े हादसे की नींव साबित हो सकती हैं।

मुरैना में निर्माणाधीन यह बाईपास मुरैना गांव से जीगनी तक  16 किमी लंबा है और अंबाह एवं पोरसा बाईपास को मिलाकर इसकी कुल लंबाई 27 किलोमीटर है। 204 करोड़ की लागत से NH स्टेट द्वारा निर्माण कराये जाने वाले प्रोजेक्ट को ठेकेदार कंपनी YFC प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड-EPC बना रही है।

युग क्रांति टीम ने जब मुरैना जिला मुख्यालय से गुजर रहे बायपास और धौलपुर रोड स्थित आरोबी (ओवर ब्रिज) निर्माण स्थल का निरीक्षण किया, तो जो तस्वीर सामने आई वह न सिर्फ चौंकाने वाली थी बल्कि आपराधिक लापरवाही की ओर इशारा कर रही थी।

जहां ट्रैक्टर जब्त, वहीं सैकड़ों टन प्रतिबंधित चंबल रेता डंप, उसी से स्लैब निर्माण

जहां एक ओर नवागत कलेक्टर लोकेश कुमार जांगिड़ चंबल और आसन नदी से अवैध रेत उत्खनन एवं परिवहन पर सख्त कार्रवाई करते हुए ट्रैक्टरों को जब्त कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर उसी चंबल नदी की पूर्णतः प्रतिबंधित और रिजेक्ट श्रेणी की रेता (धूसा) सैकड़ों टन की मात्रा में ठेकेदार कंपनी की धौलपुर रोड, मुरैना स्थित साइट पर खुलेआम डंप पाई गई।

सबसे गंभीर बात यह है कि इसी प्रतिबंधित रेता से धौलपुर रोड के आरोबी के स्लैब ढाले जा रहे थे।

ओवर ब्रिज की बुनियाद में समझौता- भविष्य का हादसा तय?

मुरैना बाईपासनिर्माण विशेषज्ञों के अनुसार रिजेक्ट और प्रतिबंधित इस रेता
RCC स्ट्रक्चर के लिए पूरी तरह अनुपयुक्त होती है। इससे कंक्रीट की बाइंडिंग कमजोर होती है।स्लैब की लोड कैपेसिटी घटती है। ऐसी रेत से बना ओवर ब्रिज टिकाउ नहीं बल्कि_ हादसे के लिए सिर्फ समय का इंतजार करता है।

यह सवाल बेहद गंभीर है कि क्या ₹204 करोड़ की परियोजना में लोगों की जान की कीमत ठेकेदार की लागत बचत से कम आंकी गई?

सड़क में परतों की खुली चोरी—रोलिंग, क्यूरिंग गायब..

युग क्रांति टीम ने जब पास में बन रही सड़क का निरीक्षण किया तो हालात और भी चिंताजनक निकले—मिट्टी की लेयर में न तो प्रॉपर रोलिंग, न क्यूरिंग एवं परतों की चोरी के साथ-साथ मोटाई में खुली कटौती सॉफ्टवेयर पर देखी जा सकती है।

GSB और WMM की परतें भी_बिना तय मोटाई, बिना पर्याप्त रोलर पास, एवं घटिया एग्रीगेट और अधिक डस्ट के साथ बनाई जा रही हैं। यानी सड़क ड्रॉइंग और मापदंडों पर नहीं, बल्कि मिलीभगत के फार्मूले पर तैयार हो रही है।

QC और थर्ड पार्टी मॉनिटरिंग—नाम के लिए?

नेशनल हाईवे प्रोजेक्ट में QC (Quality Control) और थर्ड पार्टी निरीक्षण अनिवार्य होते हैं लेकिन मुरैना के इस प्रोजेक्ट में सवाल उठता है—

जब प्रतिबंधित रेत खुलेआम डंप है ?
जब स्लैब उसी से ढाले जा रहे हैं ?
जब सड़क की परतें चोरी हो रही हैं ?

तो फिर कलेक्टर की निगरानी एवं नजर से क्यों दूर है यह रेत के टीले ?, QC लैब क्या रिपोर्ट दे रही है?और थर्ड पार्टी एजेंसी किसे बचा रही है? एवं बिल पास किस आधार पर हो रहे हैं?

युग क्रांति का सवाल..

क्या यह सिर्फ ठेकेदार की गलती है या सिस्टम की मिलीभगत?
क्या नेशनल हाईवे की गुणवत्ता सिर्फ कागजों में पूरी की जा रही है?
अगर कल को कोई बड़ा हादसा हुआ तो जिम्मेदार कौन होगा?

मुरैना बाईपास

युग क्रांति मीडिया मांग करता है_ प्रतिबंधित रेत के स्रोत और उपयोग की तत्काल जांच हो, आरोबी स्लैब की स्वतंत्र स्ट्रक्चरल ऑडिट कराई जाए, दोषी ठेकेदार, QC और निगरानी एजेंसी पर कठोर कार्रवाई हो। यह परियोजना नहीं बल्कि जनता की जानोमाल का सवाल है ?

पड़ताल अभी जारी है..