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फसल बीमा- किसानों की लूट और भाजपा सरकार का सबसे  बड़ा घोटाला

भोपाल 2 सितंबर 2025। किसान विरोधी भाजपा सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को किसानों की सुरक्षा कवच बनाने की बजाय इसे लूट का जाल बना दिया है। किसानों की मेहनत, खून-पसीने की कमाई और सरकार की भारी-भरकम सब्सिडी – सब कुछ बीमा कंपनियों और कॉर्पोरेट घरानों की जेब में जा रहा है, जबकि किसान अपने हक़ से वंचित हैं। यह बात प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से मप्र कांग्रेस प्रवक्ता राहुल राज ने कहीं।

राहुल राज ने  विस्तार पूर्वक जानकारी देते हुए बताया कि आज स्थिति यह है कि किसानों को मुआवज़े के नाम पर ₹50, ₹150 या ₹1500 जैसी मज़ाकिया रकम मिल रही है, जबकि बीमा कंपनियाँ और भाजपा सरकार की मिलीभगत से हजारों करोड़ रुपये का घोटाला हो रहा है।

चौंकाने वाले आंकड़े..
वर्ष 2024 – किसानों से ₹2743 करोड़ प्रीमियम वसूला गया। 100% क्षतिपूर्ति राशि ₹36,803 करोड़ बनती थी, लेकिन किसानों को एक भी रुपया नहीं मिला। वर्ष 2023 – किसानों से ₹2751 करोड़ वसूले गए।
100% क्षतिपूर्ति ₹36,674 करोड़ बनती थी, लेकिन किसानों को मात्र ₹775 करोड़ दिए गए। वर्ष 2022 – ₹3827 करोड़ प्रीमियम वसूला गया।
100% क्षतिपूर्ति ₹36,322 करोड़ बनती थी, लेकिन किसानों को केवल ₹1042 करोड़ दिए गए। वर्ष 2021 – ₹6700 करोड़ प्रीमियम लिया गया,
लेकिन किसानों को केवल ₹2801 करोड़ लौटाए गए। यह सभी आँकड़े प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की आधिकारिक वेबसाइट पर दर्ज हैं।

किसानों के साथ धोखा..

किसानों से लाखों करोड़ प्रीमियम और सब्सिडी के नाम पर वसूला गया, लेकिन बदले में उन्हें लगभग कुछ भी नहीं मिला।गिरदावरी और अनवरी के नाम पर पटवारियों से लेकर कलेक्टर तक की मिलीभगत से फर्जी रिपोर्ट तैयार की जाती है। पूरे हल्के का औसत लेकर किसानों का नुकसान कम दिखाया जाता है, जबकि एक ही गांव में अलग-अलग खेतों में नुकसान अलग-अलग होता है। एक हल्के में चार ऐसे खेतों को चयनित किया जाता है जिसमें सबसे कम नुकसान है जबकि गाइडलाइन के अनुसार सबसे ज्यादा नुकसान वाले खेतों का सर्वे होना चाहिए। सर्वे गाइडलाइन के बावजूद, 25% अग्रिम राशि किसानों को कभी नहीं दी जाती। भुगतान में 1–2 साल तक देरी की जाती है, ताकि सरकार और कंपनियों के बीच कमीशन का खेल चल सके। अब तो सैटेलाइट सर्वे का बहाना लेकर पूरा नुकसान ही शून्य बता दिया जाता है।

हालिया घोटाला – खरीफ 2024..
किसानों ने समय पर प्रीमियम भरा, लेकिन जब क्षतिपूर्ति की बारी आई तो उन्हें एक भी रुपया नहीं मिला। यह भाजपा सरकार और बीमा कंपनियों की मिलीभगत से किया गया सबसे बड़ा छलावा है।

साइखेड़ा, तहसील सिलवानी जिला रायसेन – यहाँ किसानों से कुल ₹21,04,209 प्रीमियम वसूला गया। इसके आधार पर 100% क्षतिपूर्ति राशि ₹2,71,18,919 बनती थी, लेकिन किसानों को ₹0 (शून्य) प्राप्त हुआ। चंदन पिपरिया, तहसील सिलवानी, जिला रायसेन – यहाँ किसानों से ₹3,96,051 प्रीमियम वसूला गया। इसके आधार पर 100% क्षतिपूर्ति राशि ₹99,01,293 बननी चाहिए थी, लेकिन किसानों को ₹0 (शून्य) मिला। घोसू ताल, तहसील सिरोंज, जिला विदिशा – यहाँ किसानों से ₹12,62,232 प्रीमियम वसूला गया। इसके आधार पर 100% क्षतिपूर्ति राशि ₹78,58,793 बनती थी, लेकिन किसानों को ₹0 (शून्य) मिला। ग्राम फराड़, तहसील कालापीपल, जिला शाजापुर – यहाँ किसानों से कुल ₹33,29,78 प्रीमियम वसूला गया। इसके आधार पर 100% क्षतिपूर्ति राशि ₹3,66,99,711 बनती थी, लेकिन किसानों को ₹0 (शून्य) मिला।

यही हाल प्रदेश के सभी जिलों का है जहां प्रदेश के किसानों को प्राप्त बीमा की राशि या तो शून्य है या फिर ऊंट के मुंह में जीरे के समान ! सबसे गंभीर तथ्य यह है कि यह घोटाला केंद्र के कृषि मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं के संसदीय क्षेत्र में भी हुआ। इससे साबित होता है कि भाजपा सरकार की नीतियाँ पूरी तरह से किसान विरोधी और कॉर्पोरेटपरस्त हैं।

सरकार और कंपनियों की मिलीभगत..
यह साफ है कि यह पूरा खेल केवल बीमा कंपनियों की तिजोरी भरने के लिए है।

किसान पसीना बहाता है – नुकसान झेलता है – और बीमा के नाम पर ठगा जाता है।

पटवारी से लेकर SDM, कलेक्टर, कृषि मंत्रालय और यहां तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय तक – सभी की सांठगांठ और कमीशनखोरी इस घोटाले की जड़ में है।

बैंकों द्वारा बीमा की किस्त खाते से काट ली जाती है, लेकिन पोर्टल पर अपलोड नहीं की जाती – जिससे किसान पूरी तरह वंचित रह जाता है।

कांग्रेस के सवाल..
1. किसानों और सरकार से वसूला गया हजारों करोड़ प्रीमियम आखिर गया कहाँ?

2. क्यों बीमा कंपनियों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई?

3. क्या भाजपा सरकार किसानों की गाढ़ी कमाई कॉर्पोरेट घरानों को सौंपने का सौदा कर रही है?

कांग्रेस पार्टी की माँग..
1. इस फसल बीमा घोटाले की उच्च स्तरीय न्यायिक जाँच कराई जाए।

2. किसानों को उनकी फसल हानि का वास्तविक मूल्य तुरंत दिलाया जाए।

3. बीमा कंपनियों को मजबूर किया जाए कि वे किसानों को पूरा मुआवज़ा दें।

4. योजना की समीक्षा कर एक पारदर्शी, जवाबदेह और किसान हितैषी व्यवस्था बनाई जाए।

5. फसल बीमा में हल्का पटवारी की जगह खेत को इकाई मानकर सर्वे कराया जाए, क्योंकि जब ओलावृष्टि होती है तो ओला पट्टी पकड़कर चलता है और खेतों का नुकसान कभी भी एक जैसा नहीं होता।

6. जब बोनी के तत्काल उपरांत संपूर्ण फसल नष्ट हो जाती है, तो गिरदावरी के न्यूनतम आंकलन का कोई औचित्य नहीं है। ऐसी स्थिति में इसे 100% क्षतिपूर्ति मानकर किसानों को पूरी राशि दी जानी चाहिए।

प्रेस कॉन्फ्रेंसयह केवल किसी एक किसान की समस्या नहीं  बल्कि पूरे प्रदेश और देश के किसानों की सामूहिक लड़ाई है।यदि आज आवाज़ नहीं उठाई गई, तो कल हर किसान को यह योजना कर्ज़ और बदहाली की तरफ धकेल देगी।