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एमपीआरडीसी में बरनवाल की कथित सत्ता की गूंज विधानसभा तक

युग क्रांति के खुलासों के बाद विधायक मालवीय ने उठाए गंभीर सवाल..

ब्रजराज एस तोमर भोपाल। मध्य प्रदेश सड़क विकास निगम (एमपीआरडीसी) के कथित सत्ता–केंद्र संजय कुमार उर्फ संजय बरनवाल के विवाद एक बार फिर सुर्खियों में हैं। युग क्रांति द्वारा पिछले महीनों किए गए बड़े खुलासों की गूंज अब सीधे विधानसभा के शीतकालीन सत्र तक पहुँच चुकी है।

विधायक डॉ. चिंतामणि मालवीय ने पीडब्ल्यूडी मंत्री राकेश सिंह से बरनवाल की मूल नियुक्ति / प्रतिनियुक्ति को लेकर तीखे सवाल दागे, जिसने संजय बरनवाल के पूरे “साम्राज्य” की बुनियाद को हिला दिया है।

युग क्रांति के खुलासों की पृष्ठभूमि..

युगक्रांति की विशेष पड़ताल “27 सौ से 27 करोड़ – एक नटवरलाल की गाथा” में विस्तार से बताया गया कि कैसे एक साधारण प्राइवेट कर्मचारी से शुरू हुआ सफर कथित रूप से करोड़ों की अघोषित संपत्तियों तक पहुँच गया। खुलासों में यह भी उजागर हुआ कि संजय कुमार से संजय बरनवाल बने इस व्यक्ति ने –एमपीआरडीसी के मानव संसाधन विभाग को अपने कब्जे में लिया, रिश्तेदारों की नियमविरुद्ध नियुक्तियां करवाईं और फिर एमपीआरडीसी से एमपीबीडीसी तक अपना जाल फैलाते हुए एक अभेद्य किला के रूप में अपना कथित साम्राज्य स्थापित कर लिया मगर युग क्रांति के खुफिया तंत्र ने न सिर्फ इस अभेद्य किला में सेंध लगाई बल्कि इसकी बुनियाद दिला दी और इसी आधार पर अब विधानसभा में सवाल उठे हैं।

सदन की कार्यवाही: विधायक मालवीय के सवाल और मंत्री के जवाब..

दिनांक 05/12/2025, प्रश्न क्रमांक 70, में विधायक डॉ. चिंतामणि मालवीय ने लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह से तीन सीधे प्रश्न पूछे:

प्रश्न 1: क्या सहकारी शक्कर मिल के किसी कर्मचारी को एमपीआरडीसी में प्रतिनियुक्ति से पदस्थ किया जा सकता है?

मंत्री का जवाब: जी नहीं,

प्रश्न 2: क्या राघौगढ़ सहकारी शक्कर मिल, जिला गुना के किसी कर्मचारी को एमपीआरडीसी में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ किया गया?
जवाब: जी हां

प्रश्न 3: यदि हां, तो कब और किस पद पर पदस्थ किया गया?
जवाब: 31-12-2004 को कंप्यूटर टेक्नीशियन के रूप में

पीडब्ल्यूडी मंत्री को ‘गुमराह’ करने का आरोप..

बरनवाल के दस्तावेज

युग क्रांति की जांच और उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार, संजय बरनवाल शक्कर मिल में नियमित कर्मचारी नहीं थे बल्कि दैनिक वेतनभोगी थे। इसके बावजूद यद्दापि एमपीआरडीसी की ओर से विधानसभा में उन्हें “कंप्यूटर टेक्नीशियन” बताकर प्रस्तुत किया गया—जो तथ्यात्मक रूप से गलत बताया जा रहा है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात—प्रश्न क्रमांक 1 में स्वयं मंत्री ने स्वीकार किया कि सहकारी शुगर मिल के कर्मचारी को एमपीआरडीसी में प्रतिनियुक्त नहीं किया जा सकता। लिहाजा बरनवाल की सड़क विकास निगम में प्रतिनियुक्ति (31.12.2004) स्वयं सरकार के उत्तर के अनुसार ही अवैध साबित होती है।

संजय बरनवाल की कथित सत्ता, नियुक्तियों की अनियमितता और करोड़ों की संपत्ति का मुद्दा अब केवल मीडिया तक सीमित नहीं रहा—यह सीधे विधानसभा के पटल पर है। आगामी दिनों में यह मामला और गर्माने की पूरी संभावना है। अब देखने वाली बात यह होगी कि लोक निर्माण विभाग के मंत्री द्वारा प्रतिनियुक्ति के विधान पर दिए गए जवाब की पूर्ति विधानसभा के पटल तक रहती है अथवा विभागीय स्तर पर इस पर अमल किया जाता है ?

इस नियुक्ति की गाथा पढ़िए पिछली इस खबर में

” 27 सौ से 27 करोड़ तक की कहानी_एक नटवरलाल की गाथा” (भाग-1)