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” 27 सौ से 27 करोड़ तक की कहानी_एक नटवरलाल की गाथा” (भाग-1)

कैसे एक मामूली कर्मचारी ने जालसाजी से नौकरी हथिया कर बनायी करोड़ों की संपत्ति !

भोपाल 14 अक्टूबर 2025। मध्य प्रदेश सड़क विकास निगम के स्थापना शाखा (एचआर) में वर्तमान में पदस्थ एक अधिकारी की कहानी किसी फ़िल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं लगती। बताया जाता है कि मात्र ₹2700 मासिक वेतन से नौकरी शुरू करने वाले इस व्यक्ति के पास आज 27 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति है।

युग क्रांति इस सप्ताह एक विशेष शृंखला में इस ‘नटवरलाल’ की पूरी गाथा उजागर करेगा — कि कैसे उसने न केवल सरकारी नौकरी पाई बल्कि रिश्तेदारों को भी नौकरी दिलाई और उन्हीं के नाम पर धंधे व संपत्ति का जाल बिछाया।

कहानी की शुरुआत — साल 1998

यह कहानी शुरू होती है पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल से। बिहार के गिरिडीह ज़िले का रहने वाला एक युवक अपने रिश्तेदार IAS अधिकारी (जो उस समय मुख्यमंत्री का OSD था) के घर मध्य प्रदेश में आता है। कुछ दिन तक उनके घर रहकर सेवा करता है और वहीं से उसकी ‘सरकारी सफर’ की शुरुआत होती है।

फर्जी अनुभव पत्र का कमाल..

बताया जाता है कि इस युवक ने 29 फरवरी 2000 की तारीख में (जो चार साल में एक बार आती है) एक फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र तैयार कराया — जिसमें उसे एक ठेकेदार के “सहायक स्टेनो” के रूप में ₹2700 मासिक वेतन पाने वाला कर्मचारी बताया गया।
यह प्रमाण पत्र इतना “पुख्ता” बनाया गया कि उस पर कई अधिकारियों के सत्यापन हस्ताक्षर मौजूद थे। बाद में इसमें कुछ पंक्तियाँ हाथ से जोड़कर उसे “बहुत कार्यकुशल कर्मचारी” बताया गया।

बिना विज्ञापन नौकरी..

सिर्फ 10 महीने बाद – 9 दिसंबर 2000 को बिना किसी शासकीय विज्ञापन के उसे कृषक सहकारी शक्कर कारखाना मर्यादित, नारायणपुरा (राघौगढ़) में स्टेनो-कम-डेटा एंट्री ऑपरेटर के पद पर संविदा नियुक्ति मिल गई।
वेतनमान ₹4000 और आवास सुविधा के साथ, यह नियुक्ति दो वर्षों के लिए थी लेकिन दस्तावेज़ों में इतनी सावधानी बरती गई कि चार-चार अधिकारियों ने उसकी ज्वाइनिंग तक पर हस्ताक्षर किए।

सन 2004 में खेल पलटा..

वर्ष 2004 में जब मध्य प्रदेश सड़क विकास निगम (MPRDC) का गठन हुआ, तो वही संविदा कर्मचारी अचानक ‘EDP इंचार्ज’ बन गया और वेतन ₹8300 प्रतिमाह कर दिया गया। आदेश में यह भी जोड़ा गया कि इसका प्रभाव 1 जुलाई 2004 से माना जाएगा और एरियर का भुगतान जनवरी 2005 में किया जाएगा।

इसके बाद दिसंबर 2004 में उसे राघोगढ़ शक्कर कारखाने से “नियमित कर्मचारी” के रूप में रिलीव कर दिया गया और भोपाल स्थित सड़क विकास निगम में प्रतिनियुक्त कर दिया गया। धृतराष्ट्र को महाभारत दिखाने वाले_ कुमार अब बरनवाल बनकर यहां तमाम गुल खिला रहे हैं।

 

✳️ आगे के भाग-2 में पढ़िए —
➡️ कैसे इस अधिकारी ने सरकारी पद पर रहते हुए अपने रिश्तेदारों को भी नौकरी दिलाई,
➡️ किन नामों से भोपाल, ग्वालियर और इंदौर में व्यवसाय खड़े किए,
➡️ और कैसे सरकारी सिस्टम को वर्षों तक बेवकूफ़ बनाया गया।