hacklink al
jojobet girişjojobetjojobetjojobet girişjojobetjojobet girişjojobet girişjojobet girişjojobetjojobet girişjojobetjojobet girişjojobetjojobet girişjojobetjojobet girişjojobetjojobet girişjojobetjojobet girişjojobetjojobet girişholiganbetjojobetjojobet girişjojobetjojobet girişjojobetjojobetjojobet girişjojobetjojobet girişholiganbetholiganbet girişpadişahbetpaşacasinograndpashabetjojobetjojobet girişcasibom girişcasibom girişcasibom girişcasibom girişkralbetkingroyalmatbetmatbet girişmatbet güncel girişmatbetmatbet girişmatbet güncel girişholiganbetholiganbet girişholiganbet güncel girişholiganbetholiganbet girişholiganbet güncel girişholiganbet girişnakitbahisnakitbahis girişnakitbahisnakitbahis girişnakitbahisnakitbahis girişmatbetmatbet girişcasibomcasibom girişholiganbetholiganbet girişholiganbet güncel girişholiganbetholiganbet girişholiganbet güncel girişcasibomcasibom girişjojobetjojobet girişpusulabetpusulabet girişholiganbetholiganbet girişpusulabetpusulabet girişpusulabet güncel girişvdcasinovdcasino girişholiganbetholiganbet girişkonya eskort

सबके लिए त्वरित न्याय की अवधारणा पर आधारित हैं नये आपराधिक कानून: डॉ. मोहन यादव

भोपाल 01 जुलाई 2024। भारत में आपराधिक कानूनों में परिवर्तन और सुधार एक महत्वपूर्ण विषय है, जो समाज की बदलती आवश्यकताओं और न्याय की आवश्यकता को पूरा करने के लिए समय-समय पर किया जाता है। हाल ही में, भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम जैसे आपराधिक कानूनों को संसद में पारित किया गया। अब एक जुलाई 2024 से पूरे देश में यह लागू हो रहा है।

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री, श्री अमित शाह ने संसद में कानून को पेश करते हुए कहा कि खत्म होने वाले ये तीनों कानून अंग्रेज़ी शासन को मज़बूत करने और उसकी रक्षा करने के लिए बनाए गए थे । इनका उद्देश्य दंड देने का था, न की न्याय देने का। तीन नए कानून की आत्मा भारतीय नागरिकों को संविधान में दिए गए सभी अधिकारों की रक्षा करना, इनका उद्देश्य दंड देना नहीं बल्कि न्याय देना होगा। भारतीय आत्मा के साथ बनाए गए इन तीन कानूनों से हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा।

पुराने कानूनों में गुलामी की बू आती थी। ये तीनों पुराने कानून गुलामी की निशानियों से भरे हुए थे क्योंकि इन्हें ब्रिटेन की संसद ने पारित किया था और हमने सिर्फ इन्हें अपनाया था। इन कानूनों में पार्लियामेंट ऑफ यूनाइटेड किंगडम, प्रोविंशियल एक्ट, नोटिफिकेशन बाई द क्राउन रिप्रेज़ेन्टेटिव, लंदन गैज़ेट, ज्यूरी और बैरिस्टर, लाहौर गवर्नमेंट, कॉमनवेल्थ के प्रस्ताव, यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड पार्लियामेंट का ज़िक्र है। इन कानूनों में हर मैजेस्टी और बाइ द प्रिवी काउंसिल के रेफेरेंस दिए गए हैं, कॉपीज़ एंड एक्सट्रैक्ट्स कंटेट इन द लंदन गैज़ेट के आधार पर इन कानूनों को बनाया गया, पज़ेशन ऑफ द ब्रिटिश क्राउन, कोर्ट ऑफ जस्टिस इन इंग्लैंड और हर मैजेस्टी डॉमिनियन्स का भी ज़िक्र इन कानूनों में कई स्थानों पर है। अच्छी बात यह कि गुलामी की निशानियों को पूरी तरह मिटा दिया गया है। जिसके तहत 475 जगह ग़ुलामी की निशानियों को समाप्त कर दिया गया है। हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में बहुत समय लगता है, कई बार न्याय इतनी देर से मिलता है कि न्याय का कोई मतलब ही नहीं रह जाता है, लोगों की श्रद्धा उठ जाती है और अदालत में जाने से डरते हैं।
इन कानूनों को बनाने के पीछे बहुत लंबी प्रक्रिया रही है। इन कानूनों को आज के समय के अनुरूप बनाने में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अगस्त, 2019 में सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों, देश के सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और देश के सभी कानून विश्वविद्यालयों को पत्र लिखे थे। वर्ष 2020 में सभी, महामहिम राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों और सांसदों एवं संघ-शासित प्रदेशों के महामहिम प्रशासकों को पत्र लिखे गए। इसके बाद व्यापक परामर्श के बाद ये प्रक्रिया कानून बनने जा रही है। इसके लिए 18 राज्यों, 6 संघशासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट, 16 हाई कोर्ट, 5 न्यायिक अकादमी, 22 विधि विश्वविद्यालय, 142 सांसद, लगभग 270 विधायकों और जनता ने इन नए कानूनों पर अपने सुझाव दिए हैं। यह प्रक्रिया सरल नहीं थी, काफी मेहनत की गई बीते 4 सालों में। खूब विचार विमर्श किया गया है। इस संदर्भ में हुई 158 बैठकों में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह उपस्थित रहे हैं।

इन कानूनों में क्या बदलाव हुआ है, इस पर केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने बताया कि आज तक आतंकवाद से परिचित सभी थे लेकिन आतंकवाद की परिभाषा, व्याख्या नहीं थी। अब ऐसा नहीं रहेगा। अब अलगाव, सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियां, अलगाववाद, भारत की एकता, संप्रभुता और अखंडता को चुनौती देने जैसे अपराधों की पहली बार इस कानून में व्याख्या की गई है। इससे जुड़ी संपत्तियों को ज़ब्त करने का अधिकार भी दिया गया है। जांचकर्ता पुलिस अधिकारी के संज्ञान पर कोर्ट इसका आदेश देगा। गौरतलब है कि अनुपस्थिति में ट्रायल के बारे में केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला किया है। सेशंस कोर्ट के जज द्वारा प्रक्रिया के बाद भगोड़ा घोषित किए गए व्यक्ति की अनुपस्थिति में ट्रायल होगा और उसे सज़ा भी सुनाई जाएगी, चाहे वो दुनिया में कहीं भी छिपा हो। उसे सज़ा के खिलाफ अपील करने के लिए भारतीय कानून और अदालत की शरण में आना होगा। अभी तक देखा गया है कि देश भर के पुलिस स्टेशनों में बड़ी संख्या में केस संपत्तियां पड़ी रहती हैं। अब इस ओर भी तेजी लाई जाएगी। यानी अब इनकी वीडियोग्राफी करके सत्यापित प्रति कोर्ट में जमा करके इनका निपटारा किया जा सकेगा।

इन कानूनों में अत्याधुनिकतम तकनीकों को समाहित किया गया है। दस्तावेज़ों की परिभाषा का विस्तार कर इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड्स, ई-मेल, सर्वर लॉग्स, कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन, लैपटॉप्स, एसएमएस, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य, डिवाइस पर उपलब्ध मेल और मैसेजेस को कानूनी वैधता दी गई है, जिनसे अदालतों में लगने वाले कागज़ों के अंबार से मुक्ति मिलेगी। इस कानून को डिजिटलाइज किया गया है, यानी एफआईआर से केस डायरी, केस डायरी से चार्जशीट और चार्जशीट से जजमेंट तक की सारी प्रक्रिया को डिजिटलाइज़ करने का प्रावधान इस कानून में किया गया है। अभी सिर्फ आरोपी की पेशी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हो सकती है, लेकिन अब पूरा ट्रायल, क्रॉस क्वेश्चनिंग (cross questioning) सहित, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से संभव होगी। शिकायतकर्ता और गवाहों का परीक्षण, जांच-पड़ताल और मुक़दमे में साक्ष्यों की रिकॉर्डिंग और उच्च न्यायालय के मुक़दमे और पूरी अपीलीय कार्यवाही भी अब डिजिटली संभव होगी। सर्च और ज़ब्ती के समय वीडियोग्राफी को अनिवार्य कर दिया है, जो केस का हिस्सा होगी और इससे निर्दोष नागरिकों को फंसाया नहीं जा सकेगा। पुलिस द्वारा ऐसी रिकॉर्डिंग के बिना कोई भी चार्जशीट वैध नहीं होगी।

आजादी के 75 सालों के बाद भी दोष सिद्धि का प्रमाण बहुत कम है। यही कारण है कि मोदी सरकार ने फॉरेंसिक साइंस को बढ़ावा देने का काम किया है। तीन साल के बाद हर साल 33 हज़ार फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट्स और साइंटिस्ट्स देश को मिलेंगे। साथ ही श्री अमित शाह ने लक्ष्य रखा है कि दोष सिद्धि के प्रमाण को 90 प्रतिशत से ऊपर लेकर जाना है। इसके लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान किया गया है कि 7 वर्ष या इससे अधिक सज़ा वाले अपराधों के क्राइम सीन पर फॉरेंसिक टीम की विजिट को अनिवार्य किया जा रहा है। इसके माध्यम से पुलिस के पास एक वैज्ञानिक साक्ष्य होगा जिसके बाद कोर्ट में दोषियों के बरी होने की संभावना बहुत कम हो जाएगी। वर्ष 2027 से पहले देश की सभी अदालतों को कंप्यूटराइज्ड कर दिया जाएगा। इसी प्रकार मोबाइल फॉरेंसिक वैन का भी अनुभव किया जा चुका है। दिल्ली इसका उदाहरण है। दिल्ली में इसका सफल प्रयोग किया गया। इसके तहत 7 वर्ष से अधिक सज़ा के प्रावधान वाले किसी भी अपराध के स्थल पर फॉरेंसिक साइंस लैबरोटरी (एफएसएल) की टीम पहुंचती है। इतना ही नहीं मोबाइल एफएसएल को भी लॉन्च किया गया। बता दें कि यह संकल्पना पूर्ण रूप से सफल है। यही वजह है कि अब हर ज़िले में 3 मोबाइल एफएसएल रहेंगी और अपराध स्थल पर जाएंगी।

यौन हिंसा के मामले में भी पहले के कानून में फेर-बदल किया गया है। इसके अंतगर्त यौन हिंसा के मामले में पीड़ित का बयान अनिवार्य कर दिया गया है और यौन उत्पीड़न के मामले में बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग भी अब अनिवार्य कर दी गई है। पुलिस को 90 दिनों में शिकायत का स्टेटस और उसके बाद हर 15 दिनों में फरियादी को स्टेटस देना अनिवार्य होगा। पीड़ित को सुने बिना कोई भी सरकार 7 वर्ष या उससे अधिक के कारावास का केस वापस नहीं ले सकेगी, इससे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा होगी। ऐसा पहली बार हुआ है कि कम्युनिटी सर्विस को सज़ा के रूप में इस कानून के तहत लाया जा रहा है। छोटे मामलों में समरी ट्रायल का दायरा भी बढ़ा दिया गया है। अब 3 साल तक की सज़ा वाले अपराध समरी ट्रायल में शामिल हो जाएंगे। इस अकेले प्रावधान से ही सेशंस कोर्ट्स में 40 प्रतिशत से अधिक केस समाप्त हो जाएंगे। आरोप पत्र दाखिल करने के लिए 90 दिनों की समय सीमा तय कर दी गई है और परिस्थिति देखकर अदालत आगे 90 दिनों की परमिशन और दे सकेंगी। इस प्रकार 180 दिनों के अंदर जांच समाप्त कर ट्रायल के लिए भेज देना होगा। कोर्ट अब आरोपित व्यक्ति को आरोप तय करने का नोटिस 60 दिनों में देने के लिए बाध्य होंगे। बहस पूरी होने के 30 दिनों के अंदर माननीय न्यायाधीश को फैसला देना होगा, इससे सालों तक निर्णय लंबित नहीं रहेगा और फैसला 7 दिनों के अंदर ऑनलाइन उपलब्ध कराना होगा।

पुराने आपराधिक कानूनों को निरस्त करना और नए कानूनों को अपनाना देश की वर्तमान वास्तविकताओं को दर्शाता है। भारतीय लोकाचार और संस्कृति को प्रतिबिंबित करने के लिए इन कानूनों का नाम बदला गया। जैसे कि भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 – पुरातन ब्रिटिश औपनिवेशिक युग से प्रस्थान का प्रतीक है, जिसमें सजा पर न्याय पर जोर दिया जाता है।

पिछले दशक में प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने धार्मिक कट्टरवाद और आतंकवाद पर सख्त रुख अपनाया है। आतंकवाद और उग्रवाद को लेकर सरकार की शून्य-सहिष्णुता नीतियों और कार्यों के कारण ये ताकतें अब रक्षात्मक मुद्रा में हैं।इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार ने यूएपीए समेत संबंधित अधिनियमों में आवश्यक संशोधन किए हैं। राष्ट्रीय जांच एजेंसी को विदेशों में भारतीयों और भारतीय हितों से संबंधित आतंकी अपराधों की जांच करने का अधिकार दिया गया है। नए आपराधिक कानूनों ने अनुपस्थिति में मुकदमे की अनुमति देकर इस बदलाव को और मजबूत किया है।

*लेखक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री है