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अधिवक्ता परिषद की मध्यभारत प्रांत की बैठक का आयोजन हुआ संपन्न

ग्वालियर 01.09.2024। आज अधिवक्ता परिषद मध्य भारत प्रांत की बैठक का आयोजन नगर शिवपुरी में संपन्न हुआ जिसे अधिवक्ता परिषद मध्य भारत प्रांत की जिला इकाई शिवपुरी द्वारा आयोजित किया गया। जिसमें स्वागत सत्र में श्री विक्रम दुबे द्वारा प्रथम सत्र की शुरुआत करते हुए अधिवक्ता परिषद द्वारा पूर्व में निर्धारित चार आयाम के बारे में विशेष जानकारी देते हुए बताया कि उक्त आयाम के माध्यम से किस तरह से समाज में बैठे अंतिम छोर तक के व्यक्ति को न्याय प्रदान किया जा सकता है। इसी क्रम में श्री विक्रम दुबे द्वारा आगे जानकारी देते हुए बताया गया कि मुख्य रूप से चार आयाम अधिवक्ता परिषद की राष्ट्रीय टीम द्वारा निर्धारित किए गए। जिनमें मुख्य रूप से आउटरीच पहला आयाम, दूसरा नॉलेज कलेक्टिव /थिंक टैंक, एवं तीसरा लिटिगेशन बनाया गया एवं चौथे आयाम के स्वरूप में संगठन की संचरना की गई है ।जिसमें चारों आयामो के माध्यम से किस तरह से समाज के गरीब तबके तक न्याय प्रदान किया जा सकता है एवं राष्ट्रीय हित में जो भी ज्वलंत मुद्दे होते हैं उनका भी कोर्ट के माध्यम से भी सार्वजनिक हित में निराकरण कराया जा सकता है और इस बारे में विशेष जानकारी प्रदान की। इसी क्रम में कार्यक्रम को आगे बढ़ते हुए अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री सत्य प्रकाश द्वारा करते हुए कहा गया कि किस तरह से समाज में इमरजेंसी के दौरान भी अधिवक्ताओं का कितना योगदान रहा है जैसे कि सरदार वल्लभ भाई पटेल मदन मोहन मालवीय के देश हित में योगदान से जान सकते है। कार्यक्रम के तीसरे एवं आखिरी सत्र में श्री दीपेंद्र सिंह कुशवाहा राष्ट्रीय मंत्री अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद एवं अतिरिक्त महाधिवक्ता उच्च न्यायालय खण्डपीठ ग्वालियर द्वारा अपने उद्बोधन में श्री अरविंदो जी के बारे में व्याख्यान दिया गया और बताया कि किस तरह से उनके द्वारा अधिवक्ता रहते हुए समाज कल्याण के कितने काम निरंतर रूप से किए गए जिन्हें आज सारी दुनिया बखूबी से जानती है। श्री कुशवाहा ने ऐसे कई उदाहरणों के माध्यम से कार्यक्रम को संबोधित करते हुए चारों आयामों के माध्यम से किस तरह से हम तहसील वर्ग तक के अधिवक्ताओं तक पहुंच सकते हैं एवं अधिवक्ताओं के द्वारा अंतिम छोर तक के व्यक्ति को किस तरह निशुल्क न्याय प्रदान कराने में सामाजिक सरोकार में अपनी भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं जिसकी वर्तमान परिपेक्ष्य में नितांत एवं महती आवश्यकता है।