18 जून “बलिदान दिवस” “पढ़ो,सोचो और विचारो “

18 जून 1576 को मेवाड़ की इस पावन धरा, राजपूतो की वीर भूमि, वीरांगनाओं की तपोभूमि, बलिदानीयो की शौर्य भूमि, देशभक्ति एवं स्वाभिमान को प्रमाणित करती इस भूमि, को देश ही नहीं दुनिया में याद किया जाता है और धरा की पावन मिट्टी को माथे लगाया जाता है, एक बार फिर बार-बार नमन एवं प्रणाम।

हिंदूवा सूर्य महाराणा प्रताप की वीरता और शौर्य गाथा आज देश के कोने-कोने मे जानी जाती है प्रताप को जो सम्मान देश भर में प्राप्त है उसमें उन “वीरों और बलिदानियों की वीरता और बलिदान” को कैसे भुलाया जा सकता है। जिन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था, और ऐसा करने वाले वीर योद्धा और “स्वाभिमान एवं राष्ट्रवाद” के पुरोधा थे। ग्वालियर के “तोमर वंश” के महाराजा मानसिंह के पोते और ग्वालियर के महाराजा विक्रमादित्य के बेटे महाराजा “रामसिंह तोमर” जिन्हें प्रेम और आदर से महाराणा मेवाड़ उदय सिंह जी ने 1558 में स- परिवार चित्तौड़ दुर्ग पहुंचने पर उन्हें “शाहो का शाह” की उपाधि से सम्मानित करते हुए “राजा राम शाह तोमर” कहकर सम्मानित किया।

मेवाड़ और ग्वालियर की पूर्व से चली आ रही वैवाहिक परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अपनी” बेटी और प्रताप की बहन” “लीला कुवंर” की शादी राम शाह के सबसे बड़े बेटे “राजकुमार शालीवाहन” से करके परंपरा को आगे बढ़ाया। बाद के वर्षों में छोटे बेटों भवानी सिंह और प्रताप सिंह के भी वैवाहिक रिश्ते के प्रस्ताव अन्य स्थानों से प्राप्त हुए। जिन्हें राम शाह ने यह कहकर स्वीकार नहीं किया कि “मैं चंबल घाटी से यहां वैवाहिक रिश्ते करने नहीं आया हूं बल्कि “राष्ट्र में मुगल सल्तनत के विस्तार को रोकने”, “मेवाड़ के स्वाभिमान को बरकरार रखने”, और “प्रताप के गौरव” और स्वतंत्र रहने एवं “मुगल सल्तनत “को मेवाड़ की वीर भूमि से दूर रखने आया हूं।
हल्दीघाटी के युद्ध में 18 जून 1576 को क्या हुआ यह हर “राष्ट्रवादी एवं देशभक्त “जानता है, मुख्य प्रश्न है” चंबल घाटी” के उन वीर राजपूतो का जो राम शाह तोमर के साथ आए थे। तोमर राजपूतो के साथ ही अन्य जिनमें “बाबू सिंह भदौरिया” और “दाऊ सिंह सिकरवार” के नेतृत्व में “भदौरिया” और “सिकरवार” राजपूत के साथ ही अन्य वंश के राजपूतों की सैकड़ो की तादाद में उपस्थिति रही थी और उनका बलिदान होकर वीरगति को प्राप्त हुए थे। प्रताप की सेना के मुख्य सेनापति स्वयं “महाराणा प्रताप “थे बाए भाग के सेना नायक ” हकीम खान सूर” थे और दाएं भाग के प्रधान सेनापति “राजा रामशाह “तोमर थे। प्रताप की ओर से पहले हमला “दाएं भाग के राजपूतो ने हीं किया था जिससे घबराकर अकबर की सेना के बाएं भाग के “बरहा के सय्यदो” ने मैदान से भाग कर खुले मैदान में मोर्चा जमाया। जहां लड़ाई के मैदान एवं बनास के किनारे मैदान में पहुंची, दोनों पक्षों की सेना में भयानक युद्ध हुआ और मैदान “रक्त से लाल “हो गया और आज वह भूमि “रक्त ताल” के नाम से दुनिया में प्रसिद्ध है।

18 जून के इस ऐतिहासिक युद्ध में राजा रामशाह तोमर उनके सबसे बड़े बेटे, मेवाड़ राज्य के “दामाद राजकुमार शालीवाहन “एवं दोनों बेटे भवानी सिह ओर प्रताप सिंह के साथ ही “शालीवाहन का पुत्र 16 वर्षीय बलभद्र”, जो “प्रताप का भांजा एवं मेवाड़ महाराणा की बेटी का बेटा था” वह भी वीरगति को प्राप्त हुआ था तो तोमर राजपूतो के लिए यह गर्व का विषय हो सकता है कि उनके “ग्वालियर का राजा राम शाह तोमर” अपने तीन बेटों और एक पोते के साथ, “रक्त ताल” में वीरगति को प्राप्त हुए और “चंबल घाटी ने हल्दीघाटी” में सर्वोच्च बलिदान देकर एवं उच्च कोटि की वीरता दिखाकर इतिहास में स्वर्णिम पृष्ठ जोड़ दिया। तीन पीढ़ी ,एक ही दिन, एक ही स्थान पर,एक साथ, एक दूसरे की आंखों के सामने ,मेवाड़ धरा के लिए, राजपूत की “आन और शान” के लिए उसी दिन “देवलोक वासी” या “शहीद” हो गए ,और परंपरा के अनुसार युद्ध समाप्ति के साथ ही, मेवाड़ महाराणा स्वर्गीय उदय सिंह जी की बेटी, महाराणा प्रताप की बहन, राजकुमार शालीवाहन की धर्म पत्नी ,भंवर बलभद्र की माता, भवानी सिंह एवं प्रताप सिंह की भाभी ,राम शाह की पुत्रवधू एवं ग्वालियर की युवरानी,” लीला कुवंर ” ने अपनी आंखों से “अपने ससुर” अपने “पति” अपने “देवर” एवं अपने “बेटे ” के शवो को किस “साहस और हिम्मत” से देखा होगा “कल्पना नहीं की जा सकती है “पति के सर को गोद मे लेकर “अग्नि स्नान” किया या “सती” हुई कैसा “विरोचित” एवं “कारूणीक” पल रहा होगा “कल्पना भी नहीं की जा सकती है”राजपूत के अलावा दुनिया के किसी भी देश की किसी भी महिला ने ऐसा दृश्य देखा है तथ्य एवं प्रमाण के साथ प्रस्तुत करने वाले को 5 लाख रू का ईनाम दूंगा। लोकतंत्र और संविधान की दुहाई देने वालों एवं बिके हुए कलम कारो और बेशर्म और बेहया, “वक्ताओं “मंच से अपनी वाही वाही करवाने, जातिवाद के बल ,पर नेता बनने वालों, तुम्हारी पिछली सात पीढ़ी में से किसी ने देश और मातृभूमि के लिए एक छोटा सा बलिदान करना तो दूर रक्त की एक बूंद भी भारत माता को अर्पित नहीं की होगी। “राजपूत और उनके पूर्वजों” उनके “वीरों और उनके वीरांगनाओं “पर उंगली उठाने वाले कलमकार हो या भाषण बाज उनके द्वारा निराधार, “अपमान जनक” एवं “भड़काऊ टिप्पणी” करने वाले उन “हरामियों” की औलाद ही हो सकते हैं जिनकी मां कौन है। यह जानकारी तो उनके पड़ोसी भी दे सकते हैं लेकिन उनका बाप कौन है यह जानकारी तो शायद उनकी मां भी ना दे सके, क्योंकि “खानदानी लेखक” या “भाषण बाज” तो “बकवास “कर ही नहीं सकता है, बकवास वही कर सकता है जिसका खून गंदा हो,

लेखक- गोपाल सिंह राठौड़ नीमच