जयपुर 27 अगस्त 2025। राजनीति में सत्ता और संपत्ति का गठजोड़ कोई नई बात नहीं है मगर राजस्थान में यह खेल खुले आम खेला जा रहा है और इस खेल की खिलाड़ी कोई और नहीं बल्कि उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी है। हैरानी की बात तो यह है कि उनके सामने भजनलाल सरकार भी नतमस्तक है। कहानी सिर्फ सत्ता के गलियारों की चाल बाजी की नहीं बल्कि जयपुर की उन तमाम सरकारी जमीनों और संपत्तियों की है जिन पर दिया कुमारी और उनके परिवार का कब्जा लगातार बढ़ता जा रहा है हालांकि सत्ता और समृद्धि के लिए सियासी खेल खेलना इनके राजवंश की परंपरा है।
जयपुर में यह कब्जा चुपके-चुपके नहीं बल्कि सरकारी मशीनरी की खामोशी के बीच सरेआम हो रहा है। इस बात की हलचल सियासी गलियारों में इतनी है कि हाल ही में दिया कुमारी को अपने बचाव में सोशल मीडिया पर कैंपेन तक चलवाना पड़ा। इसके जरिए यह मैसेज देने की कोशिश की गई कि दिया कुमारी पाक-साफ है मगर जनता सब जानती है और शायद यही वजह रही कि दिया कुमारी के कैंपेन का धुआं निकल गया। असल मुद्दा यह है कि भजन सरकार ने जानबूझकर या मजबूरी में डिप्टी सीएम के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया। नतीजन सरकारी जमीन के रूप में अरबों की संपत्तियों और जनता की विरासत धीरे-धीरे दिया के परिवार की निजी हो जाएगी। अदालतों में उनके नाम से जुड़े एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों मामले चल रहे हैं जिनमें इनका दावा यही है कि सरकारी जमीन हमारी है। जिनमें चार बड़े मामले ऐसे हैं जो दिया कुमारी की मंषा को न सिर्फ उजागर करते हैं बल्कि यह भी बताते हैं कि राजस्थान की सरकार और प्रशासन उनके सामने कैसे बौने साबित हो रहे हैं।
दिया ने दोहराई राजवंश की परंपरा..!
गौरतलब है कि दिया कुमारी जयपुर (अंबर) के पूर्व राजघराने सवाई राजा मानसिंह प्रथम की वंशज है जो कि विदेशी आक्रांता मुगल सम्राट अकबर के दरबारियों में नवरत्नों में शुमार थे। अपने राष्ट्रप्रेम एवं संस्कृति के मान-सम्मान की परवाह किए बिना वे मुगलिया दरबार में प्रतिष्ठा पाने के लिए सियासी खेल खेलते रहे। यद्यपि राजा मानसिंह एक शक्तिशाली योद्धा के रूप में अकबर के सेना प्रमुख रहे मगर इतिहासकारों की माने तो उनके कालखंड में सत्ता और समृद्धि की हवस में ऐसी सियासत खेली गई जो इतिहास में काले अध्याय के रूप में दर्ज है। इसमें तत्कालीन राजपूत-मुगल वैवाहिक गठबंधन भारत के इतिहास का सबसे बड़ा विवादास्पद रणनीतिक सियासी गठबंधन था। जिसकी छत्रछाया में अंबर/ जयपुर राजवंश मुगलों की मित्रता के नाम पर अकबर,
जहांगीर और शाहजहां के काल तक सत्ता के सुख और समृद्धि से फलता-फूलता रहा। और तो और ये मुगल शैली के इतने प्रशंसक एवं अनुयाई थे कि जिसके प्रमाण आज भी आमेर के किला, गणेशपोल एवं शीश महल में मुगल शैली की वास्तुकला एवं स्थापत्य शैली में साफ-तौर पर देखा जा सकता है। यद्यपि राजवाड़ा खत्म हुए जमाना बीत गया लेकिन दिया कुमारी की यही रजवाड़ी सोच अभी तक जिंदा है।
अब बात करते हैं दिया कुमारी के चार प्रमुख मामलों की। बात पहले मामले की करें जो भजनलाल सरकार कोर्ट में हार गई। जयपुर के बीचों-बीच हदरोई की सरकारी जमीन जिसका खसरा नंबर 227, 228 एवं 230 है। वर्षों से यहां नर्सिंग काउंसिल, रेजीडेंसी स्कूल और सरकारी डिस्पेंसरी चल रही है लेकिन अप्रैल 2025 में हाईकोर्ट में जमीन दिया कुमारी के परिवार के नाम कर दी गई। इसके पीछे वजह रही कि भजन सरकार कोर्ट में केस हार गई, सोची समझी रणनीति के तहत जान-बूझकर सरकारी वकील कोर्ट पहुंचे ही नहीं और वक्त पर फीस जमा हुई ही नहीं । सरकार सुप्रीम कोर्ट जा सकती थी लेकिन अब तक भजन सरकार सुप्रीम कोर्ट नहीं पहुंची है। भले ही फाइल बस्ते में दबा दी गई हो मगर जनता सब देख रही है कि कैसे लोकतंत्र के नाम पर घिनौना खेल खेला जा रहा है और खेलने वाला कोई और बाहरी नहीं बल्कि सरकार के अंदर बैठे लोग ही हैं।
शेष खुलासा आगामी अंकों में..