सनातन परंपरा में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। यह कालखंड पूर्वजों को याद करने, उनका तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करने के लिए शुभ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, पूर्वजों की प्रसन्नता से जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है, वहीं उनकी नाराजगी से घर-परिवार में बाधाएं, आर्थिक संकट और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां उत्पन्न होती हैं।पितृपक्ष कब तक रहेगा?
इस वर्ष पितृपक्ष 07 सितंबर से 21 सितंबर 2025 तक रहेगा। मान्यता है कि इस अवधि में किए गए कर्म, तर्पण और दान सीधा पितरों तक पहुंचता है। यदि घर में बार-बार बीमारी, आर्थिक तंगी, संतान संबंधी समस्या या अचानक काम बिगड़ने जैसी स्थिति आती है, तो यह पितरों की अप्रसन्नता का संकेत माना जाता है। ऐसे में पितृपक्ष के दौरान किए गए कुछ उपाय जीवन की रुकावटों को दूर कर सकते हैं।
तर्पण और पिंडदान
पितृपक्ष में तिल, कुश और जल से तर्पण तथा आटे या चावल के लड्डू (पिंड) अर्पित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इससे पितरों की आत्मा को संतोष मिलता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।
अन्न और जल अर्पण
प्रतिदिन थोड़ा-सा भोजन और जल पितरों के नाम पर अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह कृतज्ञता का प्रतीक है और पूर्वजों की कृपा घर पर बनी रहती है।
पूर्वजों की तस्वीर का सम्मान
घर में लगी पितरों की तस्वीरों को साफ करना, उन पर पुष्प या माला चढ़ाना और दीप जलाना पितरों को प्रसन्न करता है। इससे परिवार में शांति और एकता बनी रहती है।
दक्षिण दिशा में दीप प्रज्वलन
पितृपक्ष के दौरान दक्षिण दिशा में दीप जलाना शुभ फलदायक है। शास्त्रों में कहा गया है कि दीपक का प्रकाश पितरों तक पहुंचता है और उन्हें शांति प्रदान करता है।
पूजा और हवन में स्मरण
धार्मिक अनुष्ठानों और हवन में पितरों का नाम लेकर आह्वान करना न केवल पितृदोष को कम करता है, बल्कि धार्मिक कार्यों की पूर्णता भी सुनिश्चित करता है।
दान और पुण्य
जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र या धन का दान करना पितरों को प्रसन्न करता है। “दानं पितृभ्यो मोदाय” – यानी दान से पितर प्रसन्न होकर घर को सुख-समृद्धि और आशीर्वाद प्रदान करते हैं।