hacklink al
waterwipes ıslak mendilasetto corsa grafik paketijojobetjojobet girişjojobetjojobet girişjojobetjojobet girişpusulabetcasibomjojobetjojobet girişholiganbet girişjojobetjojobet girişpusulabetjojobetjojobet girişbets10padişahbetpadişahbet girişjojobetjojobet girişholiganbet

विकास की बजाय बंटाधार की ओर अग्रसर है मध्यप्रदेश का भवन विकास निगम

समूचा विभाग संविदा कर्मियों के हवाले..

ग्वालियर-चंबल में हो रहा है घटिया मटेरियल से वोकस निर्माण..

भोपाल/ ग्वालियर। जिस विभाग की प्रशासकीय अधोसंरचना नियमों को ताक पर रखकर भ्रष्टता की बुनियाद पर टिकी हो तो भला उसकी इमारत एवं बनी संरचनाएं कितनी बुलंद होगी इसकी सुर्खियां अभी से दिखने लगी है, जबकि इस विभाग को अस्तित्व में आए सिर्फ 3 साल हुए हैं और इसके ऊपर वर्तमान में प्रदेश की हजारों करोड़ की संरचनाओ का जिम्मा है।

यह विभाग है मध्य प्रदेश का भवन विकास निगम, जिसके पास प्रदेश में मेडिकल कॉलेज, शासकीय अस्पताल, स्कूल, स्पोर्ट कांपलेक्स जैसी हजारों करोड़ की बड़ी-बड़ी परियोजनाएं हैं। मध्य प्रदेश भवन विकास निगम 2022 में भाई-भतीजे, रिश्ते-नाते की बुनियाद पर नियमों को दरकिनार करते हुए अस्तित्व में आया। यह विभाग दो-तीन अधिकारियों के अतिरिक्त पूर्ण रूपेण संविदा कर्मियों के हवाले है और यहां सतीश डोंगरे जैसे सहा. महाप्रबंधक अपने ऑफिस एवं बैठने के लिए कुर्सी-टेबल की आज तलक जद्दोजेहद कर रहे हैं।

जिन संविदा कर्मियों की नियुक्ति मात्र 1 वर्ष के लिए हुई हो साथ ही जिनका चाल, चरित्र एवं चेहरा अभी से आर्थिक अपराध एवं भ्रष्टता की सुर्खियां बटोरने लगा है जबकि इस विभाग को अस्तित्व में आए जुम्मा जुम्मा 3 साल हुए‌ है, इनसे भला किस तरह के ईमान एवं जम्मेदारी की उम्मीद की जा सकती है। भ्रष्टता की यह इबारत इतनी लंबी है कि मीडिया से लेकर आर्थिक अपराध /लोकायुक्त के गलियारों के साथ-साथ विधानसभा के प्रश्न पटल तक पहुंच गई है। घटिया मटेरियल से बोगस निर्माण में सुर्खियां बटोरने वाली इन परियोजनाओं में मुख्य रूप से सागर की बंडा तहसील का सीएम राइज स्कूल, नाथू खेड़ा भोपाल का स्पोर्ट्स कंपलेक्स, बुधनी मेडिकल कॉलेज सहित प्रदेश भर की कई संरचनाएं शामिल है। हजारों करोड़ की परियोजनाओं में करोड़ों के घोटाले की गूंज इसी विधानसभा के मानसून सत्र में तराना विधायक महेश परमार द्वारा सुनाई दी।

ग्वालियर-चंबल में हो रहा है घटिया मटेरियल से वोकस निर्माण..

ग्वालियर के पास मालनपुर में तकरीबन 100 करोड़ की लागत से बन रहे सैनिक स्कूल, मुरैना में 18 करोड़ की लागत का अस्पताल एवं श्योपुर में बन रहे तकरीबन 12 करोड़ के अस्पताल का युगक्रांति टीम द्वारा मौका मुआयना किया। जिसमें प्रथम दृष्टया घटिया एवं अमानक मटेरियल का इस्तेमाल होना देखा गया। मुरैना एवं श्योपुर की परियोजनाएं लगभग पूर्णतया की ओर है और ग्वालियर (मालनपुर-जिला भिंड) का सैनिक स्कूल प्रारंभिक दौर में है। मुरैना एवं श्योपुर में धड़ल्ले से चंबल के रेता इस्तेमाल किया जा रहा है यहां तक कि मुरैना में सांक नदी का (धूसा) रेत को भी उपयोग में लाया जा रहा है तो वहीं मालनपुर सैनिक स्कूल में भी चंबल अथवा मिट्टी मिला घटिया एवं प्रतिबंध रेता इस्तेमाल हो रहा है इसका अंदाजा साइट पर लगे रेता के टीले पर खड़े पेड़-पौधो से लगाया जा सकता है। साथ ही यहां पर फ्लैकी (नुकीली पैनी) गिट्टी का इस्तेमाल हो रहा है। इसकी सीमेंट कंक्रीट के साथ मिक्सिंग प्रॉपर ना होने की वजह से काफी कम स्ट्रैंथ आती है इसी कारण इसका इस्तेमाल बहुदा वर्जित रहता है। सरिया के रूप में मुरैना, श्योपुर सहित यहां भी प्राइमरी स्टील की बजाय सेकेंडरी स्टील का ही प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है जबकि सेकेंडरी स्टील इस्तेमाल संबंधी करोड़ों का घोटाला विधानसभा पटल तक पहुंच चुका है। बता दें कि घरेलू अथवा लोकल स्तर के छोटे निर्माण कार्यों में उपयोग होने वाला स्क्रैप मेड इस सेकेंडरी स्टील की आयु प्राइमरी स्टील की तुलना में आधी होती है फिर भी इसका इस्तेमाल होना संयोजित भ्रष्टता का हिस्सा है। इस क्रम में ठेकेदार अथवा सप्लायर से साठ- गांठ करके अंबा शक्ति/ जिंदल सरिया (सेकेंडरी स्टील) अप्रूव करा लिया जाता है और छोटे-बड़े सभी तरह के प्रोजेक्ट्स में  ठेकेदार धड़ल्ले से इस्तेमाल कर है जबकि सरकार की गुणवत्ता मानक एजेंसी/विभाग द्वारा बड़ी परियोजनाओं में सेकेंडरी स्टील के इस्तेमाल पर मनाही है। यहां सभी परियोजनाओं में लोकल मेड अंबा शक्ति सरिया इस्तेमाल हो रहा है। तीनों जगह थर्ड क्लास फ्लाईऐश ब्रिक्स के साथ-साथ अन्य पदार्थ भी अमानक स्तर के हैं। पोल खुलने  संबंधित एजीएम एवं डीजीएम इनकी ड्राइंग एवं शेड्यूल आइटम लिस्ट दिखाने से आनाकानी करते हैं नगर युगक्रांति की पड़ताल अभी जारी है।

एमपी बीडीसी  अभी तक भवन विकास निगम की कोई भी परियोजना सार्वजनिक उपयोग एवं बर्ताव तक में नहीं आई है और अभी से यह हालात हैं। बीडीसी में विकसित हो रही भ्रष्टता की इस गटर गंगा पर एमडी, सीजीएम एवं ईएनसी अंकुश लगाने की बजाय यदि इसमें शुमार हो गये तो विकास निगम का विनाश निगम बनना सुनिश्चित है। लिहाजा मुख्यमंत्री एवं विभागीय मंत्री को भी नवांकुरित विभाग पर पैनी नजर रखने की जरूरत है।