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सरनेम से साम्राज्य तक- एमपीआरडीसी के रसूखदार ‘बरनवाल’ की तिलिस्मी सियासत

‘अभेद किले’ में आई दरार, सत्ता की चकाचौंध में बदल गया सरनेम और सरोकार

भोपाल 16 अक्टूबर 2025।एमपीआरडीसी में बनाए गए ‘बरनवाल के अभेद किला’ में जब युगक्रांति के जासूसी तंत्र ने सेंध लगाना शुरू किया, तो धीरे-धीरे कई रहस्यों से पर्दा उठने लगा। यह कहानी है उस शख्स की जिसने न केवल विभाग में अपना साम्राज्य खड़ा किया बल्कि अपनी पहचान तक बदल ली।

शादी के बाद उपनाम बदलने की बातें तो आम हैं मगर सत्ता और साम्राज्य की हवस में किसी पुरुष द्वारा अपने मामा के सरनेम को अपनाना कम ही देखा और सुना गया है, मगर सड़क विकास निगम के इस सख्श ने ऐसा कर दिखाया —और इस तरह संजय कुमार बने संजय बरनवाल। यानी अपनी पहचान को भी पद और प्रभाव के हिसाब से गढ़ने की मिसाल कायम की।

सूत्रों के अनुसार, एमपीआरडीसी मुख्यालय में यह अधिकारी स्वयं को “किशन कन्हैया” समझने का शौक रखता है — जहां कार्यालय की गोपियों सी महिला अधिकारी/कर्मचारियों का घेरा इन्हें आनंद देता है। बताया जाता है कि कभी-कभी यह “बंसी की तान” लेकर धार जिले तक पहुंच जाते हैं, तो कभी भोपाल संभाग में इनके सुर गूंजने लगते हैं।

सूत्रों की माने तो इसी “दोस्ताना व्यवहार” की सीमाएं एक बार तब टूट गईं, जब एक महिला अधिकारी ने खुद को असहज महसूस करते हुए इनके विरुद्ध गंभीर आरोप लगाए। मामला दर्ज हुआ, न्यायालय में प्रकरण दर्ज होने की नौबत तक आई और फिर शिकायत वापस लेने के लिए इस महिला को डराने-धमकाने की कोशिशें भी हुईं। इस क्रम में
एक महिला की जांच समिति में भी रिमोट उन “शक्तिशाली हाथों” में रहा जिन्होंने फैसला एकतरफा करवा दिया।

फिर भी, इस अधिकारी की एक “कला” की तारीफ हर आईएएस करता है —“काम इस तरह करता है कि सामने वाले को कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ती।”
शायद यही कला उसे एमपीआरडीसी के लगभग 300 कर्मचारियों के बीच प्रभावशाली और अजेय बनाए हुए है।

एमपीआरडीसी के सौ से अधिक टोल प्लाजा के ठेकेदारों से भी उसके गहरे और बहुआयामी संबंधों की चर्चा अब खुलकर हो रही है। ऐसा लगता है कि बरनवाल का यह “रसिक मिजाज और प्रबंधन कौशल”  दोनों मिलकर उस तिलिस्मी साम्राज्य की नींव बने हैं, जिसने एक ₹2700 तनख्वाह पाने वाले व्यक्ति को एमपीआरडीसी का ‘राजा’ बना दिया।

>>आगे के भाग में.. “वित्तीय साम्राज्य का विस्तार और सिपेहसालार”