निजी सचिव/स्टेनो सत्य प्रकाश शर्मा की भूमिका पर उठे सवाल –
परिवहन विभाग में ‘सचिव सिंडिकेट’ का साम्राज्य, इसके समक्ष मंत्री और आयुक्त भी बोने
भोपाल- ग्वालियर। मध्य प्रदेश परिवहन विभाग के अंदर एक ऐसा नाम चर्चा के केंद्र में है, जो न तो कोई उच्चाधिकारी है और न ही -जनप्रतिनिधि – मगर विभाग का पूरा तंत्र उसके इशारों पर काम करता दिखाई देता है। यह नाम है सत्य प्रकाश शर्मा, जो आयुक्त कार्यालय में निजी सचिव/स्टेनो के पद पर पदस्थ हैं, किंतु प्रभाव और पहुंच के मामले में विभागीय मंत्री तक को पीछे छोड़ चुके हैं।
सूत्रों की माने तो परिवहन आयुक्त विवेक शर्मा के निजी सचिव सत्य प्रकाश शर्मा का विभागीय नेटवर्क मंत्री और आयुक्त तक को मात देता है। विभागीय गलियारों में यह नाम बीते कुछ वर्षों से इसकी कार्यशैली ‘सचिव सिंडिकेट’ की तरह देखी जा रही है। बताया जाता है कि वे पूर्व आरक्षक एवं कथित परिवहन माफिया सौरभ शर्मा के चाचा और गुरु दोनों हैं। सूत्रों के मुताबिक, जब गुरु गुड़ हो गए और चेला शक्कर बनने लगा, तभी सियासत का ऐसा खेल रचा गया जिसमें सौरभ शर्मा को रास्ते से हटाकर दौलत और शोहरत का मैदान पूरी तरह गुरु के हवाले कर दिया गया।
रुतबा ऐसा कि मंत्री भी दिखें ‘बोने’..
परिवहन विभाग के उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं कि निजी सचिव होने के बावजूद सत्य प्रकाश शर्मा का प्रभाव अपने अधिकारी आयुक्त से भी अधिक है। कई बार विभागीय मंत्री तक उनके सामने “औपचारिक” दिखाई देते हैं। कार्यालय में वे अक्सर कर्मचारियों और अधिकारियों के घेरे में रहते हैं और उनके रवानगी के वक्त कई अधिकारी/कर्मचारी व गार्ड उनके चरणस्पर्श करते देखे जाते हैं।
विभाग में चर्चा है कि किसी में इतनी हिम्मत नहीं कि वे शर्मा के खिलाफ बोल सके, चाहे वह वरिष्ठ अधिकारी हो या विभागीय मंत्री।
आयुक्त की पोस्टिंग में भी ‘सत्य प्रकाश फैक्टर’?..
परिवहन विभाग के सियासी गलियारों में यह भी माना जा रहा है कि आयुक्त विवेक शर्मा की नियुक्ति भी सत्य प्रकाश शर्मा के इशारों पर हुई थी। बदले में प्रदेश के प्रमुख बैरियर और चेकपोस्ट पर उनकी “कमान” सुनिश्चित की गई।
हालांकि इस दावे की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन कई अनुभवी अधिकारी इसे “ओपन सीक्रेट” मानते हैं।
संपत्ति का साम्राज्य और ‘बेनामी नेटवर्क’..
भले ही सत्य प्रकाश शर्मा किसी जांच एजेंसी के दायरे में अब तक नहीं आए हैं, मगर सूत्रों का दावा है कि उनकी संपत्ति का मूल्य लगभग हजार करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है।
युग क्रांति की पड़ताल में ग्वालियर क्षेत्र में उनके नाम (या उनके कथित प्रतिनिधियों के नाम) पर 500–600 बीघा जमीन और एक आलीशान फार्महाउस की जानकारी सामने आई है।
इनमें से अधिकांश संपत्तियाँ बेनामी स्वरूप में रिश्तेदारों और नजदीकी सहयोगियों के नाम पर दर्ज हैं। सूत्र बताते हैं कि इनमें से एक नाम तथाकथित स्थानीय “रॉबिनहुड” से भी जुड़ा हुआ है, जिसकी भूमिका अब स्वयं सत्य प्रकाश को खटकती हुई बताई जा रही है।
सेवा का नाम, असल में सिंडिकेट की तरह विभाग को चलाना है काम
विभागीय सूत्रों का कहना है कि यद्यपि शर्मा की पदस्थापना आयुक्त के निजी सचिव के रूप में है, लेकिन उन्हें विभागीय कार्यों में कभी सक्रिय रूप से नहीं देखा जाता।
वे अधिकतर समय विभाग के आर्थिक संचालन और कथित सिंडिकेट व्यवस्था के प्रबंधन में व्यस्त रहते हैं।
आंतरिक चर्चाओं के अनुसार, वे विभाग में होने वाली “काले धन की अर्थव्यवस्था” के मुख्य प्रबंधक के रूप में कार्य कर रहे हैं।
बड़े सवाल है_क्या परिवहन आयुक्त विवेक शर्मा अपने ही निजी सचिव पर कार्रवाई करने में असमर्थ हैं? क्या विभागीय मंत्री भी इस “अदृश्य दबाव” के आगे विवश हैं? और यदि नहीं, तो किस आधार पर एक निजी सचिव पूरे विभागीय तंत्र पर इस हद तक प्रभाव रखता है?