रविवार की सुबह थी..
काम का दबाव नहीं, भागदौड़ नहीं—बस आराम का दिन।
राहुल बालकनी में बैठा मोबाइल स्क्रॉल कर रहा था।
उसी समय उसके बूढ़े पिता हाथ में दो कप चाय लेकर आए।
“चल बेटा… आज मेरे साथ चाय पी ले,”
पिता ने मुस्कुराते हुए कहा।
राहुल ने कहा—
“पापा, अभी थोड़ा काम है… बाद में पीते हैं।”
पिता ने एक पल राहुल को देखा,
और धीमे से बोले—
“ठीक है बेटा… काम ख़त्म हो जाए तो पी लेना।”
और वो वापस मुड़कर चले गए।
कुछ देर बाद राहुल काम निपटा कर बालकनी में गया—
पिता नहीं थे।
किचन में देखा—
एक कप में चाय पड़ी ठंडी हो चुकी थी,
और पिता दीवार के सहारे आंख बंद किए बैठे थे।
राहुल ने हल्के से पूछा—
“सो गए क्या, पापा?”
पिता ने आंख खोली और बोले—
“नहीं बेटा… बस इंतज़ार कर रहा था,
क्योंकि पता है…
अब तुम्हारे साथ चाय पीने के दिन
गिनती के रह गए हैं।”
राहुल के हाथ से कप छूटते-छूटते बचा।
मन एकदम भर आया।
मोबाइल साइड में रखा
और पिता के पास बैठ गया।
उस दिन राहुल ने पहली बार महसूस किया—
माता-पिता को हमारे साथ वक्त चाहिए,
हमारा वक्त नहीं।
❤️ रविवार संदेश..
रविवार सिर्फ आराम का दिन नहीं,
किसी अपने का हक़ का दिन भी होता है।
📌 कुछ मिनट अपने घरवालों को दे दीजिए,
क्योंकि काम तो रोज़ मिलेगा…
पर लोग रोज़ नहीं मिलेंगे।
