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सिविल जज–2022 में ST वर्ग की 121 सीटों पर शून्य चयन, आदिवासी समाज में आक्रोश

पक्ष विपक्ष में कटाक्ष

विधायक ने राज्यपाल को भेजा पत्र—विक्रांत भूरिया बोले, “सुनियोजित भेदभाव का सबसे बड़ा प्रमाण”

भोपाल 13 नवंबर 2025। मध्यप्रदेश सिविल जज (MPCJ)–2022 के हाल में जारी हुए परिणाम ने राज्यभर में बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। कुल 191 पदों में से 121 पद अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के लिए आरक्षित रखे गए थे, लेकिन इन 121 पदों पर एक भी उम्मीदवार का चयन नहीं हुआ। इस गंभीर स्थिति को लेकर मनावर विधानसभा के विधायक डॉ. हिरेलाल अलगवा (अलाावा) ने राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल को विस्तृत शिकायत पत्र भेजते हुए संविधानिक प्रावधानों की अवमानना और चयन प्रक्रिया में पक्षपात का गंभीर आरोप लगाया है।

वहीं, आदिवासी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं झाबुआ विधायक डॉ. विक्रांत भूरिया ने इस परिणाम को “आदिवासी युवाओं के खिलाफ सुनियोजित, संरचनात्मक और संस्थागत भेदभाव” बताते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी है।

विधायक डॉ. हिरेलाल अलावा द्वारा राज्यपाल को भेजे पत्र में कहा कि MPCJ–2022 के 121 ST आरक्षित पदों में एकविधायक का पत्र भी चयन न होना घोर अन्याय और संविधान के अनुच्छेद 15(4) एवं 16(4) की अवमानना है। प्रारंभिक परीक्षा में ST वर्ग से 94 उम्मीदवार पास हुए, लेकिन मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार में एक भी चयन नहीं हुआ, जो चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है। उन्होंने बताया कि पिछली भर्ती 2019–21 में भी 88 ST आरक्षित सीटों में मात्र 7 चयन हुए, जबकि MPCJ–2021 में 114 ST सीटों में केवल 5 चयन हुए थे।

प्रदेश में लगभग 2 करोड़ आदिवासी आबादी होने के बावजूद न्यायिक सेवा में आदिवासी प्रतिनिधित्व लगभग शून्य है। डॉ. अलावा ने आरोप लगाया कि न्यायालय द्वारा आयोजित परीक्षा के पैटर्न और चयन प्रक्रियाएँ आदिवासी छात्रों के सामाजिक-सांस्कृतिक व शैक्षणिक अंतर को ध्यान में नहीं रखतीं, जिससे वे प्रारंभिक चरणों में ही बाहर हो जाते हैं।

उन्होंने राज्यपाल से मांग की कि—ST वर्ग की 121 सीटों की भर्ती पुनः कराई जाए। परीक्षा में हो रहे भेदभाव पर रोक लगाने के लिए तत्काल हस्तक्षेप किया जाए।

डॉ. विक्रांत भूरिया का तीखा हमला—“121 सीटों पर शून्य चयन…यह प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि संगठित भेदभाव है”

डॉ. भूरिया ने प्रेस वक्तव्य में कहा कि यह परिणाम केवल एक परीक्षा का मामला नहीं, बल्कि पूरे आदिवासी समाज की संवैधानिक हिस्सेदारी पर हमला है। उन्होंने कहा—“क्या सचमुच 121 सीटों पर एक भी योग्य आदिवासी युवा नहीं मिला? यह सवाल परिणाम से बड़ा है और प्रशासनिक मानसिकता को बेनकाब करता है।”

उन्होंने बताया कि पिछले चार वर्षों से यह पैटर्न लगातार देखा गया है कि आदिवासी युवा मुख्य परीक्षा तक पहुंच ही नहीं पाते।“यह प्रणालीगत पक्षपात (systemic bias) और संरचनात्मक भेदभाव (structural discrimination) का स्पष्ट उदाहरण है।”

भूरिया ने सरकार पर बड़े आरोप—TSP फंड और वन क्षेत्र विस्थापन के मुद्दे भी उठाए

डॉ. भूरिया ने इसे बीजेपी सरकार की आदिवासी–विरोधी नीतियों का हिस्सा बताते हुए कहा कि आदिवासी विकास हेतु TSP फंड के लगभग 1.25 लाख करोड़ रुपये का दुरुपयोग हुआ। नर्मदा किनारे आलीराजपुर में 6 किमी क्षेत्र में आदिवासी परिवारों को अवैध रूप से हटाने की तैयारी की जा रही है। सिंगरौली में कॉरपोरेट हितों के लिए वन क्षेत्रों की कटाई, पुलिस बल की तैनाती और आदिवासी गांवों पर दबाव डाला जा रहा है।

न्यायपालिका से आदिवासियों का प्रतिनिधित्व समाप्त होने का खतरा

डॉ. भूरिया ने चेताया कि न्यायपालिका में आदिवासी प्रतिनिधित्व शून्य होने से जंगल, खनन, वन-अधिकार, विस्थापन और पुलिस अत्याचार से जुड़े मामलों में आदिवासी आवाज और कमजोर हो जाएगी। यह स्थिति आदिवासी युवाओं के लिए न्यायिक सेवा का रास्ता लगभग बंद कर देती है। भूरिया और अलावा की संयुक्त मांग : न्यायिक जांच हो, पूरी चयन प्रक्रिया सार्वजनिक हो

दोनों नेताओं ने मांग की है कि— MPCJ–2022 की चयन प्रक्रिया की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच हो।. Screening, Cut-off, प्रश्नपत्र मूल्यांकन एवं इंटरव्यू पैटर्न को सार्वजनिक किया जाए। भविष्य में न्यायपालिका में आदिवासी वर्ग के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने हेतु ठोस कदम उठाए जाएँ।

आदिवासी समाज अब चुप नहीं बैठेगा—भूरिया की चेतावनी

डॉ. भूरिया ने कहा कि “हम न्याय के लिए लड़ेंगे, संविधान के लिए लड़ेंगे और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य के लिए लड़ेंगे। यह लड़ाई पीछे हटने की नहीं है।”

मध्यप्रदेश सिविल जज–2022 में 121 ST आरक्षित सीटों पर ZERO चयन का मामला अब बड़ा राजनीतिक और सामाजिक विवाद बन गया है। विधायक डॉ. हिरेलाल अलावा और डॉ. विक्रांत भूरिया दोनों ने इसे प्रणालीगत भेदभाव बताते हुए राज्यपाल और न्यायपालिका से हस्तक्षेप की मांग की है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा राज्य की राजनीति और न्यायिक सुधारों का केंद्र बनने की संभावना रखता है।