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देश के अद्वितीय नायक अटल जी – (डॉ नितेश शर्मा

अटल जी के लिए राष्ट्र सर्वोपरि था बाकी सब का कोई महत्त्व नहीं था। भारत प्रथम, यह मंत्र वाक्य उनके जीवन का ध्येय था। उनकी सोच में राष्ट्र प्रथम था। देश की अस्मिता व गरिमा का भाव उनके रग-रग में समाहित था। हर परिस्थिति में, चाहे वह विपरीत भी क्यों न हो, ओजस्विता और तेजस्विता उनके मुख मंडल पर झलकती थी। पोखरण देश के लिए जरूरी था तो उन्होंने चिंता नहीं की प्रतिबंधों और आलोचनाओं की, क्योंकि उनके लिए देश प्रथम था। जब सुपर कंप्यूटर नहीं मिले, क्रायोजेनिक इंजन नहीं मिले तो उन्‍होंने परवाह नहीं की। बल्कि उन्होंने तय किया कि हम खुद भारत में बनाएँगे। वैज्ञानिक कुशलता के बल पर असंभव दिखने वाले कार्य उनके कुशल नेतृत्व में संभव हो पाये। वास्तव में एक ताकत उनके भीतर काम करती थी वो थी ”देश प्रथम” की जिद। काल के कपाल पर लिखने और मिटाने की ताकत, हिम्मत और चुनौतियों के बादलों में विजय का सूरज उगाने का चमत्कार अटल जी के सीने में था, क्योंकि वह सीना देश प्रथम के लिए धड़कता था। इसलिए हार और जीत उनके मन पर असर नहीं करती थी। सरकार बनी तो भी, सरकार एक वोट से गिरा दी गई तो भी। उनके स्वरों में पराजय को भी विजय के ऐसे गगनभेदी विश्वास में बदलने की ताकत थी कि जीतनेवाला ही हार मान बैठे।

अटल जी देश के गरीब, वंचित, शोषित के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए जीवन भर प्रयास करते रहे। वे कहते थे-गरीबी, दरिद्रता गरिमा का विषय नहीं है, बल्कि यह विवशता है, मजबूरी है और विवशता का नाम संतोष नहीं हो सकता। करोड़ों देशवासियों को इस विवशता से बाहर निकालने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किए। आज भारत जिस टेक्नोलॉजी के शिखर पर खड़ा है, उसकी आधारशिला अटलजी ने ही रखी थी। वे अपने समय से बहुत दूर तक देख सकते थे-स्वप्नदृष्टा थे, लेकिन कर्म वीर भी थे। उन्होंने विदेश की यात्राएँ कीं, जहाँ-जहाँ भी गए, स्थायी मित्र बनाए और भारत के हितों को स्थायी आधारशिला वे रखते गए। अटल जी की हर धड़कन में, रोम-रोम में ‘राष्ट्र प्रथम-राष्ट्र सर्वोपरि’ की भावना रची-बसी थी।

भारत के जन-नायकों में भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी निश्चय ही एक अनूठे व्यक्तित्व हैं। वह बिना किसी पूर्वाग्रह के पक्ष हो या विपक्ष, वाम हो या दक्षिण, केद्र हो या परिधि सब प्रकार के लोगों के साथ संवाद करने के लिए प्रस्तुत रहते थे। लोकाभिमुख होने की यह वृत्ति प्रचारक के रूप में उनकी लम्बी देश-साधना के दौरान विकसित हुई थी। साथ ही संपादन कार्य उनको अद्यतन करता रहा। इस क्रम की ही परिणति थी कि भारतीय संस्कृति की साधना के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। आधुनिक मन वाले वाजपेयी जी ने आगे बढ़ कर देश की व्यापक कल्पना को संकल्प, प्रतिज्ञा और कर्म से जोड़ा और समर्पण के लिए आवाहन किया।

अटल जी ने देश के लिए व्यापक परिवर्तन की आकांक्षा को इन शब्दों में रेखांकित किया: आजादी अभी अधूरी है, सपने सच होने बाक़ी हैं ,रावी की शपथ अधूरी है।

भारतीय राजनीति के नए दौर में पारदर्शिता, साझेदारी और संवाद की ख़ास भूमिका रही। लोक तंत्र के लिए आपात काल बड़ा आघात था। उसके बाद कांग्रेस के विकल्प के रूप में ‘जनता दल’ का गठन हुआ और श्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनी। श्री वाजपेयी को इस सरकार में विदेश मंत्री का दायित्व संभल। आगे चल कर भारत का राजनैतिक परिदृश्य इस अर्थ में क्रमश: जटिल होता गया । यह स्पष्ट होने लगा कि विभिन्न राजनैतिक दलों को साथ ले कर चलने वाली एक समावेशी दृष्टि ही कारगर हो सकती थी। इसके लिए सहिष्णुता, खुलेपन की मानसिकता, सब को साथ ले चलने की क्षमता, सुनने-सुनाने का धैर्य और युगानुरूप सशक्त तथा दृढ़ संकल्प की आवश्यकता थी। इन सभी कसौटियों पर एक सर्वमान्य नेता के रूप में श्री अटल बिहारी वाजपेयी ही खरे उतरे। विविधता भरी राजनीति में उनको लेकर बनी सहमति का ही परिणाम था कि भारतीय संसद में उनको तीन बार देश के प्रधान मंत्री पद के लिए स्वीकार किया गया। यह अनूठी घटना थी। वर्ष 1999 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (नेशनल डेमोक्रेटिक अलाएंस या एन डी ए) के कठिन नेतृत्व की कमान संभालते हुए वाजपेयी जी तीसरी बार प्रधान मंत्री बने। गठबंधन वाली यह पहली पूर्णकालिक सरकार थी । उल्लेख्य है कि एन डी ए में दो दर्जन के करीब राजनैतिक दल साथ आये थे और 81 मंत्री थे । इन सबको साथ लेकर चलना कठिन चुनौती थी जिसे अटल जी ने स्वीकार किया था और उस अवधि में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये। इनमें कुछ का उल्लेख प्रासंगिक होगा । उन्हीं की पहल पर भारत के चारों कोनों को सड़क से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना शुरू की गई जिसके तहत दिल्ली, कलकत्ता, चेन्नई और मुंबई को राजमार्गों से जोड़ा गया। संरचनात्मक ढाँचे के लिये कार्यदल, सॉफ्टवेयर विकास के लिये सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल, विद्युतीकरण में गति लाने के लिये केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग आदि गठित किए गए। नई टेलीकॉम नीति आई। कोकण रेलवे की शुरुआत हुई। ये सब बुनियादी संरचनात्मक ढाँचे को मजबूत करने वाले कदम थे। निजी स्वार्थ से परे हट कर लोक-हित की व्यापक चिंता अटल जी के लिए व्यापक जनाधार का निर्माण कर रही थी। लोकैषणा उनके व्यक्तित्व का वह केन्द्रीय पक्ष था जो जन-जीवन में किसी चुम्बक की तरह कार्य करता था। वे सबको सहज उपलब्ध रहते थे। अपने लक्ष्य के प्रति एकनिष्ठ समर्पण, सतत अध्यवसाय और सशक्त भारत देश के स्वप्न को साकार करने की असंदिग्ध और सघन चेष्टा ही थी जिसने अटल जी को पक्ष-विपक्ष का सर्वमान्य नेता बना दिया था।

भारतीय संसद के चार दशकों में विस्तृत अवधि में उनकी भूमिका के सभी क़ायल हुए। भारत के तेरहवें प्रधान मंत्री के रूप में देश के स्वाभिमान और गौरव के लिए अटल जी ने अनेक निर्णय लिए। पोखरन -2 का परमाणु परीक्षण एक गोपनीय और बड़े जोखिम से भरा निर्णय था। अनेक बड़े देशों ने इस कदम के चलते भारत पर कई किस्म की बंदिशें भी लगाईं परंतु अटल जी ने दृढ़तापूर्वक सभी चुनौतियों का सामना किया और देश के परमाणु कार्यक्रम को निर्विघ्न आगे बढ़ाया। वे पड़ोसी देशों के साथ सहयोग, संवाद और सौहार्द के महत्व को पहचानते थे और इसके लिए लगातार प्रयास करते रहे। देश में सड़कों का विस्तार कर आवागमन में सुविधा के लिए बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय राजमार्गों के विस्तृत संजाल के निर्माण की योजना आधार संरचनाओं के विस्तार लिए यह उपक्रम वरदान सिद्ध हुई । इसी तरह ‘सर्व शिक्षा अभियान’ द्वारा शिक्षा के सार्वभौमीकरण का बड़ा लक्ष्य हासिल करने की दिशा में देश आगे बढ़ा है। अनेक आर्थिक सुधारों को गति देते हुए इक्कीसवीं सदी के भारत को दिशा देने में अटल जी का योगदान अविस्मरणीय है।