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शहर के अधिकांश निजी बड़े विद्यालय नहीं करते (RTE) शिक्षा के अधिकार अधिनियम का पालन

अधिकांश अशासकीय स्कूलों द्वारा आरटीई के अंतर्गत प्रवेश देने वाली कक्षा की सीटों की संख्या वास्तविकता में कुछ और एवं प्रदर्शित करने वाली कुछ और होती है..

ग्वालियर 2 मार्च 2024। कमजोर वर्ग एवं वंचित समूह के बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिनियम 1 अप्रैल 2010 को पूर्ण रूप से लागू हुआ। इस अधिनियम के तहत छह से लेकर चौदह वर्ष के इन सभी बच्चों के लिए शिक्षा को पूर्णतः मुफ्त एवं अनिवार्य कर दिया गया है। अब यह केंद्र तथा राज्यों के लिए कानूनी बाध्यता है, कि छह से लेकर चौदह वर्ष के सभी बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा सभी को सुलभ हो सके (नर्सरी एवं क कक्षाओं के लिए आयु सीमा भिन्न है)। यदि कोई भी राज्य की सरकार या कोई व्यक्ति केंद्र के इस आदेश की अवमानना करता है, या करने का प्रयास करता है, तो ऐसे व्यक्ति पर भारतीय संविधान की अवमानना करने के जुर्म में कड़ी से कड़ी सजा भी हो सकती है। इस अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक गैर शासकीय विद्यालय को अपनी प्रारंभिक कक्षा की सीटों की संख्या के 25% पर आरटीई के माध्यम से प्रवेश दिया जाएगा। ‌

शैक्षणिक सत्र 2024 -25 के लिए आरटीई के अंतर्गत प्रवेश प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है जिसमें राज्य शिक्षा केंद्र के संचालक धनराज एस के निर्देशानुसार 23 फरवरी 2024 से ऑनलाइन आवेदन जमा करना प्रारंभ हो गया है जोकि 3 मार्च तक सबमिट किए जाएंगे। राज्य शिक्षा केंद्र ने 21 फरवरी 2024 को इस संबंध में सभी जिला कलेक्टर्स को नियमानुसार पूर्ण पारदर्शी तरीके से नियत समय में यह कार्य सम्पादित किये जाने के निर्देश जारी किये हैं।

शिक्षा के अधिकार में शासन- प्रशासन का ढुलमुल रवैया..

राज्य शिक्षा केंद्र के संचालक श्री धनराज के अनुसार “प्रथम चरण की प्रक्रिया समाप्त होते ही द्वितीय चरण में प्रवेश के लिये प्रक्रिया शुरू की जायेगी। पोर्टल पर 21 मार्च, 2024 को रिक्त सीटों को प्रदर्शित किया जायेगा”,जबकि प्रत्येक गैर शासकीय विद्यालय द्वारा प्रारंभिक कक्षाओं की वास्तविक संख्या को अनिवार्य रूप से प्रदर्शित करना चाहिए जैसा कि नहीं होता है। प्रगति विद्यापीठ, ग्वालियर ग्लोरी स्कूल, लिटिल एंजेल स्कूल, राम श्री किड्स जैसे पूरे राज्य में तमाम स्कूल है जिनमें शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत जिन कक्षाओं में प्रवेश दिया जाना है उनकी वास्तविक संख्या स्कूल में कुछ और होती है तथा शो करने वाली संख्या कुछ और.. अर्थात हाथी के खाने और दिखाने के दांत अलग-अलग..।

इनका क्या कहना है..

राज्य शिक्षा केंद्र के संचालक श्री धनराज से संपादक तोमर ने बातचीत में कहा कि शिक्षा के अधिकार को पूर्ण रूप से अधिनियमित करने  के क्रम में क्या शासन द्वारा स्कूलों में औचक निरीक्षण भी एक तरीका हो सकता है? जिसके चलते तथाकथित ऐसे स्कूल अपने सीटों की वास्तविक संख्या को छुपाने से कतराएंगे.. इस बात पर श्री धनराज ने अपनी असमर्थता जैसी जाहिर करते हुए कहा कि प्रदेश में इतने सारे स्कूलों में औचक निरीक्षण करना दुर्लभ कार्य है तो इस पर संपादक तोमर ने सन 2005 के तत्कालीन स्कूल शिक्षा मंत्री लक्ष्मण सिंह गौड़ और प्रमुख सचिव आरएस जुलानिया का दौर याद दिलाया जिन्होंने की स्कूल के मास्टरों को 40 तक के पहाड़े  कंठस्थ याद करा दिये थे, हालांकि संचालक श्री धनराज एस ने यह स्पष्ट किया कि आधुनिक तकनीकी के माध्यम से हर तरह से आरटीई का पूर्ण रूप से पालन कराया जाएगा अधिनियम का पालन न करने वाले के खिलाफ नियम अनुसार शख्त कार्रवाई की जाएगी।

ग्वालियर कलेक्टर अक्षय सिंह ने कहा कि किसी भी स्कूल के द्वारा इस प्रक्रिया का उल्लंघन नहीं करने दिया जाएगा किसी भी स्कूल के बारे में इस तरह की जानकारी मिलने पर तत्काल एक्शन लिया जाएगा और साथी उन्होंने यह भी कहा कि यदि आपके पास इस तरह की कोई भी जानकारी उपलब्ध हो तो तत्काल मुझे भेजिए।