मतदान अवश्य करें, भले ही नोटा को चुने

विनम्र अपील स्वच्छ एवं स्वतंत्र मानसिकता से अपने संवैधानिक अधिकार का सदुपयोग करना बहुत जरूरी..

भोपाल 20 अप्रैल 2024। मध्य प्रदेश की 6 सीटों सीधी, शहडोल, जबलपुर, मंडला ,बालाघाट और छिंदवाड़ा में कल संपन्न हुए मतदान में औसतन 67% वोटिंग हुई जो कि 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले 8% कम है, पिछले चुनाव में इन सीटों पर औसतन 75% मतदान हुआ था। निर्वाचन आयोग की तमाम कोशिशों और पुरजोर मेहनत के बावजूद मतदान के प्रतिशत में 8% की गिरावट से साफ जाहिर होता है कि आम नागरिक सभी राजनीतिक दलों एवं उनके अधिकांश नेताओं से काफी असंतुष्ट एवं निराश हैं।

लोकतंत्र के इस महापर्व में मतदान जैसे अहम संवैधानिक दायित्व का परित्याग करना कतई वांछनीय नहीं है। इस पर संपूर्ण देशवासियों को गंभीरतापूर्वक चिंतन करना चाहिए। भारत के संविधान ने जो अधिकार हमें प्रदत्त किया है उसका पूर्ण रूप से सदुपयोग करके उसकी ताकत दिखानी चाहिए। क्योंकि आपका एक-एक वोट ही देश में सरकार को चुनता है फिर भला अपना वोट न देकर आखिरकार आपको हासिल क्या होता है? इससे आप किसे क्या जताना चाहते हैं ?

नोटा की वास्तविक ताकत..

मुद्दा यहां सिर्फ 8% मतदान कम होने का नहीं बल्कि  33 % मतदाताओं का है जो निर्वाचन प्रक्रिया का अंदरूनी बहिष्कार किए हुए बैठे हैं (67% मतदान होने का तात्पर्य है कि 33% मतदाता किसी को पसंद नहीं करते ) । 33% इन मतदाताओं को स्वीप गतिविधियों तथा मेहंदी, रंगोली एवं स्लोगन रचकर जागृत नहीं किया जा सकता क्योंकि भारत की राजनीतिक पार्टियों और इनके नेताओं ने इन तमाम मतदाताओं के भीतर गहरा असंतोष और निराशा का भाव भर दिया है। इसी कारण निर्वाचन वाले दिन अपने मतदान को छोड़कर किसी चौपाटी अथवा शैर सपाटा की जगह ये परिवार के साथ छुट्टी बिताना पसंद करते हैं जो कि मेरी राय में बिल्कुल गलत है। मतदान न करने के पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि आपकी विचारधारा के अनुरूप कोई भी राजनीतिक दल नहीं है जिसके किसी भी नेता के लिए अपना बहुमूल्य वोट दिया जासके , मगर वोट ना देने से तो आप अपने वोट की ताकत को दिखाने से वंचित रह जाते हैं। आपकी इस प्रकार की रुष्टता से किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ेगा जब आप अपने इस भावनात्मक रोष को संवैधानिक अधिकार के साथ दर्ज कराऐ और इसकी वास्तविक ताकत दिखाएं।

जब आप किसी भी पार्टी के किसी नेता को पसंद नहीं करते तभी अपने मतदान का तिरस्कार कर देते हो मगर आप शायद भूल जाते हैं कि हमारे देश में आप जैसे 33% गणमान्य मतदाताओं के लिए भी बेहतर विकल्प की व्यवस्था है। ईवीएम मशीन में सबसे आखरी बटन NOTA (none of the above) अर्थात “उपरोक्त में से कोई नहीं”दिया हुआ है। जब आप किसी भी नेता को चुनना नहीं चाहते तभी अपना वोट नहीं करते जबकि पसंदीदा विकल्प ईवीएम मशीन में मौजूद है ।

अपने वोट के तिरस्कार करने से कई गुना बेहतर है कि आप अपने इस बहिष्कार की वजह को अपने बहुमूल्य वोट की ताकत के साथ नोटा के रूप में दर्ज कराऐं। गौर तलब है कि चुनावी वर्ष अथवा निर्वाचन के दौरान यदि व्याप्त समस्याओं के चलते चुनाव के बहिष्कार के मामलों में त्वरित समाधान हुए हैं इसके अनगिनत उदाहरण है। इस दौरान सरकार और सरकारी मशीनरी एवं सभी दलों के नेताओं की सभी इंद्रियां जागृत अवस्था में होती हैं। आपके द्वारा नोटा को चुनना भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा है। क्योंकि मतगणना के दौरान नोटा पर पड़े वोटो की भी गणना होती है, अब जरा सोचिए कि मतदान के दिन आप सभी आधा से 1 घंटे समय का सदुपयोग करेंगे तो नोटा पर पड़े वोटो की संख्या इतनी होगी कि राजनीतिक दलों के तथाकथित अंधे बहरे नेताओं के कान के पर्दे और आंखें हमेशा के लिए खुल जाएंगी और हर हाल में सभी पार्टियों को सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा कि वो तुष्टिकरण और दलगत राजनीति को छोड़ देश के सच्चे विकास के लिए स्वच्छ राजनीति करें।

मैं बिल्कुल भी यहां नोटा की वकालत नहीं कर रहा हूं बल्कि पूरी पवित्र मनसा के साथ आम नागरिकों से उसके अधिकार के प्रयोग की विनम्र अपील कर रहा हूं कि वह अपने मत के तिरस्कार जैसी रुग्न मानसिकता से ऊपर उठकर स्वच्छ एवं स्वतंत्र मन से हर हाल में अपना मतदान करें।

सिर्फ हंगमा खड़ा करना मेरा मकसद नही ,                    मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

            संपादक बृजराज सिंह तोमर की प्रस्तुति