श्रीमद् भागवत कथा जीने की कला सिखाती है – नारायण सिंह कुशवाह
ग्वालियर। भगवान श्री कृष्ण सबसे बड़े समाज सुधारक हैं। वह निष्काम कर्मयोगी, आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्जित महान पुरुष है। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ। वह कलयुग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष, युगपुरुष, युगावतार का स्थान रखते है। यह बात ग्वालियर स्थित न्यू जवाहर कॉलोनी कंपू पर आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के पंचम दिवस श्रोताओं को कथा सुनाते हुए व्यास पीठ से आचार्य राम श्याम तिवारी ने कही।
कथा में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित श्याम भक्त कैबिनेट मंत्री नारायण सिंह कुशवाह ने उपस्थित भक्तों एवं पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा श्रीमद् भागवत कथा जीने की कला सिखाती है। श्री श्याम हमारे आस्था का केंद्र है। हम सनातनियों को श्रीमद् भागवत कथा शुक्त अवस्था से जागृत अवस्था में ले जाती है। ऐसे आयोजन समाज में होते रहने चाहिए।
श्रीमद् भागवत कथा यज्ञ के दौरान ग्वालियर के प्रमुख समाचार पत्रों एवं न्यूज चैनलों के पत्रकारों का सम्मान व्यास पीठ से आचार्य राम श्याम तिवारी, कैबिनेट मंत्री नारायण सिंह कुशवाह, समाजसेवी शुभम चौधरी कथा परीक्षित विमला बृज बिहारी वाजपेयी, कथा प्रबंध प्रमुख कारेलाल कुशवाह, जितेंद्र राजावत, राधेश्याम कुलश्रेष्ठ, राजेंद्र गुरेले सहित श्रीराम समिति के सदस्यों ने किया।
इन पत्रकारों का हुआ सम्मान
राजीव अग्रवाल, जोगेंद्र सेन, सुरेश शर्मा, हेम सिंह कुशवाह, कमल मिश्रा, प्रमोद गोस्वामी, यश सूर्यवंशी, राजीव सिकरवार, अनिल शर्मा, गीता पांडे, मुकेश बाथम, विवेक मांझी, सोनू शाक्य, विक्की सिंह इत्यादि
पंचतत्व के शुद्धिकरण कर्ताओ में श्री कृष्ण का अंश
व्यास पीठ से आचार्य रामश्याम तिवारी ने श्रोता भक्तों से कहा श्री कृष्ण ने ही सबसे पहले पंचतत्व के शुद्धिकरण का काम अपने हाथों में लिया। उन्हीं के अंश वर्तमान में समाजसेवी कहे जाते हैं। जो श्री कृष्ण का काम अपने हाथों में उठाए हुए हैं। श्री कृष्ण का ही एक अंश लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडियाजन है। जो जिम्मेदारों को अपनी जिम्मेदारी का बोध कराते हैं। और नेक कार्यों को समाज के बीच में ले जाकर समाज सुधारक की भूमिका निभाते हैं। आचार्य तिवारी ने कहा वर्तमान में समाज के बीच पंच परिवर्तन की चर्चा है। जो पंचतत्व के शुद्धिकरण के लिए ही है। नागरिक कर्तव्य, स्वदेशी जीवन शैली, सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन और पर्यावरण संरक्षण इसीलिए समाज को इन विषयों पर चिंतन कर पंचतत्व की रक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए। क्योंकि इन पांच तत्वों आकाश वायु जल अग्नि और पृथ्वी और पृथ्वी से औषधि का निर्माण होता है, औषधि से अन्न, अन्न से वीर्य और अंत वीर्य से पुरुष या शरीर उत्पन्न होते हैं। इसका वर्णन तैत्तिरीय उपनिषद में विस्तार से किया गया। सांसारिक जीवन में पंचतत्व का विशेष महत्व है।