एक से अधिक समस्या की शिकायत के लिए कोई विकल्प नहीं..
भोपाल 23 अगस्त 2025। यद्यपि रेलवे मंत्रालय एवं बोर्ड के कहे अनुसार भारतीय रेलवे अब केवल यात्रा का साधन नहीं बल्कि एक जवाबदेह सेवा तंत्र बनने की ओर बढ़ रही है मगर रेलवे यात्रियों की शिकायतों के समाधान के नाम पर शुरू किया गया रेल मदद ऐप वास्तविकता में औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं दिखता।
भोपाल से ग्वालियर तक पातालकोट एक्सप्रेस (No-20423) के S-5 में यात्रा कर रही युवती व पुरुष (PNR no 6357××××29) ने बताया कि स्लीपर कोच में अवैध वेंडर खुलेआम घूम रहे थे। मद्यपान और धूम्रपान करने वाले अनाधिकृत लोग माहौल को असुरक्षित बना रहे थे, हुड़दंग और शोरगुल आम बात थी। उन्होंने बताया कि इन समस्याओं की शिकायत रेल मदद ऐप से करने की कोशिश की गई तो निराशा हाथ लगी। ऐप पर एक ही शिकायत दर्ज करने का विकल्प होने के कारण शेष समस्याओं को दर्ज ही नहीं किया जा सका इसलिए फिर हमने आधी-अधूरी शिकायत करना जरूरी नहीं समझा। बता दें कि यह स्थिति केवल इस ट्रेन तक सीमित नहीं है बल्कि ऐसे अनुभव कई यात्रियों को आए हैं।
रेलवे की लापरवाही यहीं खत्म नहीं होती। छोटे स्टेशनों की स्थिति तो और भी दयनीय है। अनेक स्टेशनों पर पानी की टोंटियां तक नहीं हैं, शौचालय या तो बने ही नहीं हैं और जहां हैं भी तो वहां कभी पानी नहीं आता। इस मुद्दे पर जब पश्चिम-मध्य एवं उत्तर मध्य रेलवे के मंडल स्तर के अधिकारियों से युगक्रांति संपादक बृजराज एस तोमर ने विस्तार से चर्चा की तो उन्हें इस तरह के मसले की जवाबदेही में सक्षम नहीं पाया। इस पर भोपाल अपर मंडल अधिकारी योगेंद्र सिंह बघेल ने खानापूर्तिमय औपचारिक जवाब में बताया कि एक से अधिक समस्याओं के सबंध में सूचना अथवा जानकारी मंडल अथवा जोन के जनसंपर्क अधिकारी को देनी होती है वहां से वह अलग-अलग तरह की समस्या को संबंधित विभाग के सक्षम अधिकारियों को फॉरवर्ड करता है और इस आधार पर समस्या पर नैदानिक कार्यवाही होती है।
गंभीर सवाल यह है कि सरकार और रेलवे दोनों जानते हैं कि ग्रामीण व छोटे शहरों के यात्री इतने जागरूक नहीं होते कि वे रेल मदद जैसे डिजिटल माध्यम का उपयोग कर सकें। और जो जागरूक हैं उन्हें भी ऐप की सीमाओं के कारण राहत नहीं मिलती। यही वजह है कि सरकार यह तंत्र यात्रियों के लिए सुविधा के नाम पर एक औपचारिकता है। लिहाजा यह कहना मुनासिब है कि खैरात’ की तरह इसमें दिखावे के लिए प्लेटफॉर्म तो है लेकिन समाधान नहीं।
रेलवे अगर वाकई यात्री सेवा को लेकर गंभीर है तो उसे रेल मदद ऐप में एक ही शिकायत तक सीमित विकल्प की जगह बहु-शिकायत सुविधा देनी होगी। छोटे स्टेशनों पर पेयजल और शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करनी होंगी।वरना यह सवाल यात्रियों एवं आमजन द्वारा हमेशा उठते रहेंगे कि रेल मदद यात्रियों की मदद के लिए है या रेलवे प्रशासन की जिम्मेदारी से बचने का बहाना है, क्या रेलवे जवाबदेह सेवा तंत्र की ओर विकसित एवं अग्रसर हो रहा है अथवा सरकार का मात्र एक दिखावा है ?