कागजों मे चमक, जमीन पर अंधेरा-ग्वालियर का उजागर हुआ असली चेहरा..
ग्वालियर 17 नवंबर 2025। ग्वालियर_ वह शहर, जिसकी फाइलें खोलते ही भ्रष्टाचार की बदबू उठती है और आसमान की ओर देखते ही धूल भरे प्रदूषण का गुबार दिखाई देता है। हालात इतने भयावह हैं कि खुलासों, सर्वे रिपोर्टों, जांचों और फर्जी निर्माण फाइलों की परतें खंगालें तो ग्वालियर न सिर्फ मध्यप्रदेश, बल्कि पूरे देश के टॉप 10 सबसे अधिक भ्रष्ट और प्रदूषित शहरों की कतार में मजबूती से खड़ा दिखाई देता है।
ग्वालियर में नगर निगम के पार्षद से लेकर महापौर, विधायक और विभागीय अधिकारियों तक—काम के नाम पर फर्जी फाइलों का ऐसा तंत्र चल रहा है जिसे शहर की बदहाली में साफ तौर पर देखा जा सकता है।
28वीं रैंक, 69 प्रदूषित दिन और ‘Poor’ AQI — ग्वालियर की सांसें भारी
स्वच्छ भारत सर्वेक्षण 2025 में ग्वालियर की रैंक देश में 28वीं रही, जबकि राज्य के आंकड़ों के अनुसार शहर की एयर क्वालिटी लगातार Poor श्रेणी में दर्ज है।
एक राज्यस्तरीय रिपोर्ट बताती है कि ग्वालियर मध्य प्रदेश का सबसे अधिक धूल-प्रदूषित शहर है, साल में लगभग 69 दिन ऐसे होते हैं जब PM 2.5 का स्तर बेहद खतरनाक स्थिति में पहुंच जाता है और वर्तमान में वायु गुणवत्ता बहुत ही खराब, चिंताजनक भयावह स्तर पर है। शहर का हर चौराहा, हर मोड़ और हर सड़क बदइंतज़ामी और हवा के जहर की कहानी कह रहा है।
घोटालों की फाइलें: निगम से लेकर विभागों तक-भ्रष्टाचार का महाआलाप
ग्वालियर के भ्रष्टाचार की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि गिनती पूरी करते-करते शाम हो जाए, ऐसी सुर्खियां बटोरने वाले मामले कुछ इस प्रकार हैं।
नगर निगम विज्ञापन घोटाला, पुलिस भर्ती घोटाला, राजस्व निरीक्षक रिश्वत कांड, वन विभाग रिश्वत मामला, सड़क निर्माण में भ्रष्टाचार, सार्वजनिक शौचालय घोटाला,लोकायुक्त की कार्रवाई, विभागीय नियोजन में अनियमितताएँ शामिल है।मध्य प्रदेश CAG की ऑडिट जांच रिपोर्ट में वित्त एवं निर्माण से जुड़े कई क्षेत्रों में अनियमितताएं पाई गई।
इन सभी मामलों ने मिलकर ग्वालियर को प्रदेश के भ्रष्टाचार नक्शे में सबसे ऊपर, और राष्ट्रीय स्तर पर भी कुख्यात शहरों की श्रेणी में ला खड़ा किया है।
युगक्रांति की जमीनी पड़ताल: जिम्मेदार कौन ?
युगक्रांति की टीम ने समाजसेवियों, आमजनों और ठेकेदारों से बात की—सबकी एक ही आवाज: “ग्वालियर की यह बदहाली स्थानीय जनप्रतिनिधियों और कुछ चुनिंदा अधिकारियों की देन है।”
शहर के विकास के मुहिम में जुड़े कार्यकर्ताओ/ठेकेदारों का दावा है कि_ 66 वार्डों में से 40–50 पार्षद खुद ठेकेदारी में शामिल हैं। निधियों का दुरुपयोग फर्जी फाइलों के जरिए खुलेआम हो रहा है, पूर्व एवं वर्तमान विधायक, महापौर और सांसद भी ‘बहती गंगा’ में हाथ धोते दिखाई देते हैं। इन्होंने युग क्रांति से सहयोग की मांग करते हुए कहा कि विकास के नाम पर इन फर्जी फाइलों को हम जमीन से खोद कर निकलेंगे और जरूरत पड़ने पर सतर्कता आयोग अथवा पीएमओ तक जाएंगे।
निर्माण कार्य विशेषज्ञों का कहना है< विभागों में 30–40% ‘बिलो रेट’ पर होने वाले काम ज्यादातर फर्जी हैं क्योंकि इस दर पर वास्तव में काम होना नामुमकिन हैं जबकि पीडब्ल्यूडी एवं नगर निगम में इससे भी अधिक बिलो पर काम हो रहे हैं।इस तरह के 50% से अधिक कार्य सिर्फ फाइलों में होते हैं, ज़मीन पर उनका अस्तित्व मुश्किल से मिलता है।
यह सिस्टम न केवल शहर को खोखला कर रहा है, बल्कि विकास के नाम पर जनता के पैसे को लूटने का एक बड़ा हथकंडा बन चुका है।
बदहाली के साझेदार और विवश अधिकारी..
नगर निगम, PWD और अन्य विभागों की स्थिति दो हिस्सों में बंटी दिखाई देती है— कुछ अधिकारी भ्रष्टाचार की गाड़ी में इंजन बनकर मौज ले रहे हैं तो कुछ अधिकारी नेताओं के दबाव में मजबूर होकर महज़ खानापूर्ति कर रहे हैं।
इसी कड़वे सच के चलते तत्कालीन निगम कमिश्नर अमन वैष्णव को ग्वालियर की समस्याओं पर नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय की नाराजगी झेलनी पड़ी तो वहीं लोक निर्माण विभाग (ग्वालियर सर्कल) के मुख्य अभियंता सूर्यवंशी को भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम कीमत अपना पद गंवा कर चुका नहीं पड़ी। सूत्रों की माने तो यही वजह है कि वर्तमान कलेक्टर और निगम कमिश्नर अत्यधिक सतर्कता से, फूंक-फूंक कर कदम रखते नजर आते हैं, ताकि किसी विवाद में उनकी ‘टांग’ न फंस जाए।
ग्वालियर की कहानी आज विकास की नहीं, बल्कि फर्जी फाइलों, भ्रष्टाचार के गठजोड़ और सांसें रोकती हवा की है।
सवाल यही है—
क्या इस शहर को बचाने वाले सामने आएंगे, या भ्रष्टाचार और प्रदूषण की दोहरी मार यूं ही ग्वालियर की पहचान बनती जाएगी और विकास इन्हीं तथाकथित कारिंदों की फाइलों में फर्जी भुगतान के रूप में शहीद हो जाएगा ?
