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कानून का राज या रसूख का आतंक ?, अशोकनगर में बुलडोजर रोकने का आरोप

ग्वालियर संभाग कमिश्नर मनोज खत्री के कथित फोन कॉल्स पर बवाल..

ग्वालियर -अशोक नगर। मध्य प्रदेश सरकार लगातार यह संदेश देती रही है कि कानून के सामने न कोई रिश्तेदारी चलेगी, न रसूख और न ही कनेक्शन। हाल ही में नगरीय प्रशासन राज्य मंत्री प्रतिमा बागरी के भाई और बहनोई को गांजा तस्करी के आरोप में जेल भेजकर सरकार ने इस संदेश को दोहराया भी था।

लेकिन अशोकनगर से सामने आये ताजा मामले में ग्वालियर संभाग कमिश्नर द्वारा कार्रवाई को रोकने की पुरजोर और नाकाम कोशिश ने सरकार को इसी दावे की पुनः परीक्षा में खड़ा कर दिया है।

बुलडोजर पहुंचा, लेकिन रुकवाने की कोशिश !

अशोकनगर के कोलुवा क्षेत्र में स्थित कुख्यात सट्टा कारोबारी और दो व्यापारियों की आत्महत्या के मामले में आरोपी आज़ाद खान के अवैध फार्म हाउस पर जब प्रशासन वैध नोटिस के बाद बुलडोजर लेकर पहुंचा, तो मामला सामान्य कार्रवाई से कहीं आगे बढ़ गया।
सूत्रों एवं वायरल वीडियो की माने तो ग्वालियर संभाग के कमिश्नर मनोज खत्री ने कार्रवाई रुकवाने के लिए अपने मातहत अधिकारियों को एक-दो नहीं, बल्कि आधा सैकड़ा से अधिक फोन कॉल किए, अधिकारियों पर दबाव डाला गया
और जब वे नहीं झुके तो “मैं तुम्हें देख लूंगा” जैसी धमकी देने तक का आरोप सामने आया

इन आरोपों की निष्पक्ष जांच अब अनिवार्य..

अवैध फार्म हाउस में क्या मिला?
जब अंततः प्रशासन दबाव के बावजूद नहीं झुका और फार्म हाउस को जमींदोज किया गया, तो मौके से चौंकाने वाली जानकारियां सामने आईं—हजारों की संख्या में कंडोम, यह संकेत कि फार्म हाउस को राजस्थान से लड़कियां बुलाकर देह व्यापार / अवैध गतिविधियों के अड्डे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था।
यह वही आज़ाद खान है, जिस पर पहले से सट्टा कारोबार और आत्महत्याओं के लिए उकसाने जैसे गंभीर आरोप दर्ज हैं।
सबसे बड़ा सवाल: कमिश्नर का कनेक्शन क्या?
अब सवाल सिर्फ अवैध निर्माण का नहीं रह गया है।
एक सट्टा व्यापारी से ग्वालियर संभाग के कमिश्नर का क्या संबंध?
ऐसा कौन-सा कनेक्शन था कि अवैध फार्म हाउस बचाने के लिए कथित तौर पर इतना दबाव डाला गया?
क्या प्रशासनिक पद का उपयोग अपराधियों को संरक्षण देने के लिए किया गया?

कलेक्टर का बयान, लेकिन विवाद कायम..

अशोकनगर में कार्रवाईअशोक नगर कलेक्टर आदित्य सिंह ने कहा कि—
“कार्रवाई नहीं रोकी गई, यह केवल शुरुआत है।”
वहीं कमिश्नर मनोज खत्री की ओर से यह कहा गया कि—
“फोन पर जो बात हुई, वह औपचारिक थी।” लेकिन आयुक्त पर लगे आरोप इन बयानों से कहीं ज्यादा गंभीर हैं।
यह मामला अब स्पष्ट रूप से सरकार की नीयत और सिस्टम की ईमानदारी की परीक्षा बन गया है।यदि मंत्री के रिश्तेदार जेल जा सकते हैं तो एक संभाग आयुक्त पर लगे आरोपों की जांच से पीछे क्यों हटा जाए? जनता का साफ संदेश और मांग है कि _यदि यह साबित होता है कि किसी अपराधी को बचाने के लिए किसी वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने दबाव डाला तो कानून का राज स्थापित करने के लिए सजा सिर्फ एक होनी चाहिए — जेल।
अब जरूरत है कि—कमिश्नर मनोज खत्री और आज़ाद खान के कथित कनेक्शन की स्वतंत्र, निष्पक्ष और समयबद्ध जांच हो और दोषी चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, कानून से ऊपर न रहे।