ग्वालियर 24 दिसंबर 2025। करोड़ों रुपये की लागत से चल रही ग्वालियर रेलवे स्टेशन पुनर्विकास परियोजना एक बार फिर सवालों के घेरे में है। परियोजना के अंतर्गत बनाया गया यात्री विश्रामालय (रिटायरिंग रूम) उद्घाटन के कुछ ही समय बाद अव्यवस्थाओं का शिकार हो गया है। हालात ऐसे हैं कि यात्रियों को विश्राम की जगह परेशानी और अपमान का सामना करना पड़ रहा है।
विश्रामालय की बदहाली का नजारा प्रवेश द्वार से ही साफ दिखाई देता है। आईआरसीटीसी द्वारा संचालित इस नवनिर्मित रिटायरिंग रूम्स और रेलवे पोस्ट ऑफिस का प्रवेश द्वार एक ही रख दिया गया है, जिसके चलते पूरा कॉरिडोर रेलवे डाक पार्सलों से पटा रहता है। नतीजा यह कि थके-हारे यात्रियों को सामान के ढेर के बीच से रास्ता बनाकर विश्रामालय तक पहुंचना पड़ता है। यह स्थिति रेलवे इंजीनियरों की लापरवाह ड्राइंग या ठेकेदार की भारी भूल को उजागर करती है, जिसका समाधान दूर-दूर तक नजर नहीं आता।

युग क्रांति निरीक्षण टीम जब विश्रामालय के भीतर पहुंची तो अव्यवस्था की परतें एक-एक कर खुलती चली गईं। अंदर जाने वाली सीढ़ियां और उन्हें सुशोभित करने के लिए लगाए गए पौधों के गमले धूल की मोटी परतों से ढके हुए मिले। स्वच्छता के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति होती दिखी।
यात्रियों से बातचीत में जो सच्चाई सामने आई, वह और भी चौंकाने वाली है। रेलवे द्वारा सुविधाओं के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन कड़ाके की सर्दी में यात्रियों को ठंडे पानी से नहाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। विश्रामालय में दिखावे के लिए लगाया गया भारी-भरकम सोलर गीजर अधिकांश समय बंद पड़ा रहता है। बताया जा रहा है कि यह गीजर हाल ही में लगाया गया था, लेकिन घटिया गुणवत्ता (थर्ड क्वालिटी) के चलते पहले ही खराब हो चुका है।
हैरानी की बात यह है कि आईआरसीटीसी द्वारा इस गंभीर समस्या को लेकर पिछले महीने स्टेशन निदेशक भारद्वाज और मंडल के सीनियर डीसीएम अमन वर्मा को पत्र भेजकर रिसीविंग भी ले ली गई, इसके बावजूद आज तक न तो गीजर ठीक कराया गया और न ही बदला गया। यात्रियों की सुविधा से जुड़े इस मुद्दे पर सीनियर डीसीएम और डिप्टी चीफ इंजीनियर पटेल की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है।
स्पष्ट है कि इस पूरी लापरवाही और अव्यवस्था की सीधी जिम्मेदारी रेलवे स्टेशन के डिप्टी चीफ इंजीनियर और संबंधित ठेकेदार की बनती है, जबकि रिटायरिंग रूम्स में स्वच्छता की जवाबदारी सीएचआई बलराम मीणा के पास है। इसके बावजूद किसी भी स्तर पर जवाबदेही तय नहीं की गई है।
युगक्रांति यात्रियों की आवाज के रूप में यह सवाल उठाता है कि यदि नवनिर्मित भवनों की यह हालत है, तो यात्रियों का भरोसा रेलवे व्यवस्था से कैसे कायम रहेगा? अब देखना यह है कि जिम्मेदार अधिकारी कब तक आंखें मूंदे बैठे रहते हैं या फिर इस खबर के बाद कोई ठोस कार्रवाई होती है।
