पेटी ठेकेदार, नियमों की अनदेखी और अधिकारियों की चुप्पी से धंसा पिलर..
ग्वालियर 30 दिसंबर 2025। ग्वालियर को “स्मार्ट सिटी” का तमगा दिलाने वाली परियोजनाएं अब शहर की सुरक्षा के लिए ही सबसे बड़ा खतरा बनती जा रही हैं। ग्वालियर की पहचान और गौरव का प्रतीक बताए जा रहे स्मार्ट सिटी प्रवेश द्वार अब भ्रष्ट सिस्टम, तकनीकी अज्ञानता और अधिकारियों की मौन सहमति के चलते जनता की जान के लिए खतरा बनते जा रहे हैं।
भिंड रोड स्थित स्मार्ट सिटी प्रवेश द्वार का कभी बीम का लटक जाना और अभी पिलर धंसना किसी तकनीकी चूक का मामला नहीं, बल्कि नियमों की खुली अवहेलना, पेटी ठेकेदारों को संरक्षण और जिम्मेदार अधिकारियों की निष्क्रियता का सीधा परिणाम है। सवाल यह है कि क्या किसी बड़े हादसे के बाद ही सिस्टम जागेगा?
नगर निगम कमिश्नर संघ प्रिय ने स्वीकार किया है कि पिलर के सपोर्ट में जिस डिजाइनदार सपोर्टिंग मटेरियल का उपयोग होना था, उसमें जेसीबी मशीन का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए था, लेकिन ठेकेदार ने नियमों को ताक पर रखकर जेसीबी से खुदाई कर दी, जिससे पिलर धंस गया। इसके बावजूद काम पर निगरानी रखने वाले स्मार्ट सिटी इंजीनियरों की भूमिका पर अब तक कोई कार्रवाई सामने नहीं आई है।
कमिश्नर के अनुसार, मटेरियल की गुणवत्ता और स्ट्रेंथ की जांच के लिए सैंपल MITS भेजे गए हैं और रिपोर्ट के बाद आगे की कार्रवाई पर विचार किया जाएगा। मगर युग क्रांति का सवाल है कि जब गलती स्पष्ट है, तो रिपोर्ट का इंतजार क्यों?
पेटी कॉन्टैक्ट बना स्मार्ट सिटी की सबसे बड़ी कमजोरी
इस पूरे मामले पर युग क्रांति के संपादक ब्रजराज तोमर ने तीखा सवाल उठाते हुए कहा कि जब किसी महत्वपूर्ण और संवेदनशील निर्माण कार्य को निर्धारित मानकों वाली फर्म से कराने की बजाय पेटी ठेकेदार को सौंपा जाएगा, तो इस तरह की खामियां और हादसे स्वाभाविक हैं। खुद आयुक्त स्तर पर गलती स्वीकार की जा चुकी है, लेकिन जवाबदेही तय करने से अधिकारी बचते नजर आ रहे हैं।
गौरव द्वार नहीं, खतरे का द्वार..
जिस प्रवेश द्वार को शहर की पहचान और समृद्धि का प्रतीक बताया जा रहा था, वह काम के नाम पर लीपापोती भी नहीं सह पा रहा। कभी निर्माण लटक जाता है, तो कभी पलटकर धंस जाता है। यदि यही हाल रहा तो भिंड रोड का यह प्रवेश द्वार बहुत जल्द किसी बड़े हादसे की इबारत लिख सकता है।
रात का निरीक्षण, लेकिन कार्रवाई नदारद

हादसे के बाद रात में स्मार्ट सिटी अध्यक्ष व कलेक्टर रुचिका चौहान और स्मार्ट सिटी सचिव सीईओ व नगर निगम कमिश्नर संघप्रिय ने मौके पर पहुंचकर निरीक्षण किया और प्रारंभिक जांच के तहत मटेरियल सैंपल जांच के लिए भेजे गए। लेकिन लगातार गलतियां करने वाले ठेकेदार और नियम विरुद्ध पेटी ठेकेदार से काम कराने वाले स्मार्ट सिटी इंजीनियरों पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
जनता का युग क्रांति के माध्यम से सवाल
क्या स्मार्ट सिटी परियोजना केवल ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने का जरिया बन चुकी है? क्या किसी बड़े हादसे का इंतजार किया जा रहा है? अगर कल जान-माल का नुकसान हुआ, तो जिम्मेदारी किसकी होगी?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस परियोजना का अध्यक्ष जिले का कलेक्टर एवं सचिव नगर निगम का कमिश्नर होने बावजूद सिस्टम का फेलियर होना बहुत ही गंभीर और चिंता जनक मसाला बन जाता है। युग क्रांति यह सवाल तब तक उठाता रहेगा, जब तक दोषियों पर सीधी और सख्त कार्रवाई नहीं होती।
