कहा जाता है कि सच बोलने की कीमत चुकानी पड़ती है मगर फिर भी मै सच को बयां करने में हर कीमत को चुकाने के लिए सज हूं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की रावण पर विजय के उपलक्ष में विजयदशमी को पावन दिवस के रूप में आज 12 अक्टूबर को समूचे भारतवर्ष में जलवा जुलूस एवं पथ संचलन और छोटी बड़ी सभाओं के रूप में मनाया गया। भले ही ये महापर्व देश के हर तपके द्वारा मनाया गया मगर क्षत्रियों का छोटी बड़ी छतरियां के रूप में एकाधिकार बरकरार रहा।
इसी क्रम में महाराजा मानसिंह तोमर के ग्वालियर में विभिन्न क्षत्रिय महासभाओं के द्वारा किए गए आयोजनों पर रोशनी डालने की गुस्ताखी कर रहा हूं। क्षत्रिय समाज गुमराह के साथ साथ अब जागरूक भी हो रहा है और खासकर जागरूक होते समाज के इसी तपके से इस बात पर गौर करने की गुजारिश है कि जब ये क्षत्रिय समाज मर्यादा पुरुषोत्तम राम को अपना आदर्श और प्रतीक मानता है जिन्होंने न सिर्फ मानव समाज के हर वर्ग और तपके को साथ लिया बल्कि भिन्न-भिन्न प्रकार के प्राणियों के सहयोग से रावण पर विजय पाई फिर भी अपने आदर्श पुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम का इतना भी अनुसरण नहीं कर सके कि कम से कम अपने आदर्श के इस महापर्व को एकजुट होकर मनाते लेकिन नहीं, यहां अपनी-अपनी इज्जत अथवा दुकानदारी का सवाल है ? मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का इस्तेमाल तो महज ए ब्रांडिंग के रूप में प्रतीत होता है। वास्तविकता में अपने आदर्श का अनुसरण हो पाना तभी मुमकिन था जब इन सामाजिक संगठनों की टुकड़ियों का नेतृत्व करने वाले समाज के तथाकथित ठेकेदार ना होकर वास्तविक चिंतक होते!
भारतीय, अखिल भारतीय, राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय बगैरा बगैरा क्षत्रिय महासभाओ द्वारा ग्वालियर में जगह-जगह अपने-अपने तरीके से प्रदर्शनिया सजाई गई। जिसमें मंच पर बैठने के स्थान, अभिभाषण एवं उद्बोधन से लेकर अतिथियों के सम्मान में पुकारे गए नामों की लिस्ट भी रेट लिस्ट पर आधारित होने लगी है। महाराणा प्रताप की प्रतिमा से लेकर उनके द्वारा घास फूस की रोटी खाने पर विशेष चर्चा होती है क्योंकि इस घास फूस की रोटी के बखान से ही तो यह रसूखदार खाना खा रहे हैं और सीधा सच्चा समाज इन्हें अपना हितेषी और सामाजिक चिंतक मान रहा है। राजपूतों के तमाम छात्रावास एवं अन्य संस्थाएं इन्हीं मठाधीशों की रसूखदारी की भेंट चढ़ती जा रही है। इनके विकास एवं सृजन की तो चर्चा ही होना बंद हो गई।किसी भी समाज के कल्याण का चिंतन रैली, जुलूस, आमसभा एवं सहभोज में निहित नहीं बल्कि समाज के जरूरतमंद छात्रों के लिए आवास एवं शिक्षा की बेहतर सुविधा देने में है, यह बात एक क्षत्रिय महासभा की बैठक में इंजीनियर रमेश सिंह भदोरिया द्वारा उठाने के साथ 11 लाख रुपए देने की भी घोषणा की गई मगर उनके प्रस्ताव को तवज्जो ना देते हुए वरिष्ठजनों ने खारिज कर दिया।
यह विषय भी गौरतलब है कि क्षत्रिय समाज के महापुरुष पर किसी अन्य समाज की दावेदारी के चलते वर्ग संघर्ष जैसी परिस्थितियों भी तथाकथित इन्हीं ठेकेदारों की देन है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम को कोई भी समाज अपना आदर्श मान सकता है सभी को यह धार्मिक स्वतंत्रता है क्योंकि मर्यादा पुरुषोत्तम राम कोई ब्रांड नहीं है जिसे किसी एक समाज के द्वारा पेटेंट करा लिया गया हो! ठीक इसी प्रकार हमारे महापुरुषों का सम्मान कोई अन्य वर्ग करना चाहे तो इसमें संघर्ष किस बात का, हमारे पूर्वज को कोई अपना पूर्वज मानना चाहे और उसकी सेवा सत्कार करें तो भला इसमें कौन सा महापाप है, हां यदि कोई इस बात की जबरदस्ती करें कि यह हमारे पूर्वज / महापुरुष हैं जिसकी आपको अर्चना करनी है अर्थात अपने समाज के महापुरुष को जबरिया दूसरे पर थोपा जाए तब यह जरूर एक समस्या हो सकती है! कोई भी महापुरुष किसी समाज (कंपनी) का ब्रांड नहीं है जिसे किसी ने पेटेंट करा कर उस पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया हो। यह संघर्ष अथवा समस्या इन्हीं चंद ठेकेदारों की उपज है जो समाज को अपना व्यवसाय का क्षेत्र मानते हैं,इसे समझने की नितांत आवश्यकता है।
मैं किसी का नाम लेकर मंदिर की पवित्रता को भंग न करते हुए यह जरूर बताना चाहूंगा कि हर समाज का युवा वर्ग अब जागरुक हो रहा है वो अब बहकावे और समाज कल्याण के बीच के फर्क को गंभीरता से समझने में प्रयासरत है तभी तो इस तरह के सामाजिक कार्यक्रमों में हजारों की तादात में एकत्रित होने वाले सामाजिक बंधु- बांधवों की संख्या महीने भर की जी-तोड़ कोशिश के बावजूद एक तक पहुंचने के लाले पड़ गए और खाली कुर्सियों अंतिम क्षणों तक आगंतुकों की बाट जोहती रही..
लेखक:बृजराज सिंह तोमर (वरिष्ठ पत्रकार )