आरटीओ ऑफिस की शाखाओं में कर्मचारियों के बजाय कार्यरत हैं इनके तमाम प्राइवेट प्रतिनिधि…
एसबी राज, ग्वालियर 16 जनवरी 2025। मध्य प्रदेश का परिवहन विभाग अपने कुख्यात कारनामों के लिए यूं तो अक्सर सुर्खियां बटोरता रहा है मगर सौरभ शर्मा के रूप में लगातार उजागर हो रहे सनसनीखेज कारनामों ने विभाग की तथाकथित ख्याति में और चार चांद लगा दिए हैं। इसके बावजूद विभागीय कारनामों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। एक तरफ सिंडिकेट ने तथाकथित बेरियलों एवं अन्य व्यवस्थाओं पर शिकंजा कश रखा है तो वहीं दूसरी ओर क्षेत्रीय परिवहन कार्यालयों को दलाल एवं कर्मचारियों के प्रतिनिधियों ने अपनी गिरफ्त में ले रखा है।
युग क्रांति द्वारा पूर्व में किए गए परिवहन विभाग के खुलासों में परत दर परत तमाम सनसनी खेज मामले उजागर किए जिसमें जाहिर किया गया कि तकरीबन एक दशक से परिवहन विभाग आरटीआई रितेश तुमराम, आरटीआई किशोर सिंह बघेल, रिटायर्ड आरक्षक सौरभ शर्मा, डीपी पटेल एवं एक/दो अन्य के चंगुल में है और उनके द्वारा पूरा विभाग सिंडिकेट की तरह चलाया जा रहा है। एक ओर सिंडिकेट का एक सदस्य जांच एजेंसियों के शिकंजे में फंसने एवं चेक पोस्टों को बंद होने के बावजूद भी नई-नई तरकीबों के साथ अवैध वसूली का सिलसिला पूरे मध्य प्रदेश में जारी है तो वहीं दूसरी ओर क्षेत्रीय परिवहन कार्यालयों को बिचोलियों (दलालों) एवं विभागीय कर्मचारियों द्वारा मनोनीत एजेंटों ने चौतरफा गिरफ्त में ले रखा है।
ग्वालियर आरटीओ ऑफिस के उदाहरण से पूरे प्रदेश के हालातो पर नजर दौड़ाते हैं। छतरपुर के प्रभारी आरटीओ लक्ष्मी पुत्र विक्रमजीत सिंह कंग ने अपने अतिरिक्त प्रभार के रूप में ग्वालियर के आरटीओ पद पर दिवाली को तकरीबन 7 प्राइवेट कटरों एवं अन्य के साथ आशंदी ग्रहण की जो चेकिंग के दौरान वसूली में इनको सहयोग देते एवं साहब की ऑफिस में मौजूदगी के दौरान कार्यालय के इर्द-गिर्द निगरानी करते हुए इन्हें देखा जा सकता है। श्री कंग ने अपनी ट्रेनिंग के दौरान संपर्क में आई दीपा मैडम को अपने काम पर लगा रखा है जो इससे पूर्व स्मार्ट कार्ड बनाने वाली स्मार्ट चिप कंपनी में कार्यरत थी। साथ ही इन्होंने एक अहम जिम्मेदारी छतरपुर के विकास को सौंप रखी है जो ऑफिस की फाइलों को अप्रूव करता है। विकास आरटीओ की आईडी का स्वयं इस्तेमाल करते हुए छोटे बड़े वाहनों के रजिस्ट्रेशन, ट्रांसफर, परमिट आदि सभी फाइलों का अप्रूवल करता है। जिसके लिये ₹300 तक उपभोक्ता से लिए जाते हैं। यहां अप्रूवल का वैधानिक तात्पर्य कुछ भी नहीं है, सभी प्रक्रियाओं को पूर्ण होने के बावजूद अपने व्यक्ति से महज ए जबरिया वसूली है।
प्रधान व प्रमुख बिचौलिए एवं कर्मचारियों के प्राइवेट प्रतिनिधि..
कल के एपिसोड में युग क्रांति द्वारा लाइसेंस शाखा के प्रधान बिचौलिया प्रमोद कुशवाह के बारे में विस्तार से बताया जा चुका है। आगे की चर्चा में मुख्य रूप से विष्णु अस्ठाना एवं इसका शागिर्द भागीरथ है। ग्वालियर जिले की सभी वाहन एजेंसियों की गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन से लेकर उपभोक्ताओं को व्हीआईपी नंबर अलाट कराने एवं आवश्यकता अनुसार अनुबंध पर विभाग में परिवहन विभाग के रिटायर्ड बाबू विष्णु अस्ठाना का आरटीओ ऑफिस में एक छत्र राज्य है। ग्वालियर की हरेक एजेंसी पर बिजोलिया के रूप में इनका एक प्रतिनिधि नियुक्त है। अस्ठाना की विभाग में जड़े इतनी मजबूत है कि ग्वालियर आरटीओ की पदस्थापना में भी ये काफी दखल रखते आए हैं सूत्रों की माने तो अस्ठाना से सांठ-गांठ के बिना परिवहन अधिकारी का सही से सर्वाइवल सहज मुमकिन नहीं है। इसकी खास वजह यह भी है कि अपने बिचौलिए के इस कार्य के अलावा विष्णु एवं भागीरथ क्षेत्रीय एवं अन्य वरिष्ठ परिवहन अधिकारियों को खुश करने वाली सारी सुख सुविधाओं का विशेष ख्याल रखते हैं। जिसके चलते चतुर्थ अथवा तृतीय श्रेणी कर्मचारी विष्णु एवं चाय बेचने वाला भागीरथ आज करोड़ों की आसामी वाले रहीशों में शुमार है।
सरकारी बाबू के प्रतिनिधि के रूप में प्राइवेट व्यक्तियों में टेंपो सैक्शन में बाबू रहे ख्यालीराम के रिटायर होने के बाद उनके रिश्तेदार सुरेंद्र माहौर वर्तमान में बाबू है। टेंपो से संबंधित इनका पूरा कार्य ख्यालीराम का भांजा रॉबिन आर्य, भतीजा पंकज आर्य संभालते हैं। ऑटो सैक्शन के बाबू जगदीश राजौरिया का पूरा कार्य इनके सगे एवं रिश्ते में तीन भाई नवल एवं इंद्रजीत व अन्य संभालते हैं। इसी तरह अन्य बाबुओं में सजल पांडे (रजिस्ट्रेशन शाखा), अजय भारद्वाज, हितेश शर्मा एवं अन्य सभी 12 बाबुओं के दो से तीन सगे संबंधी पूरा काम संभाल रहे हैं। इन सभी को संबंधित शाखा में सरेआम कार्य करते देखा जा सकता है।
यहां देखने वाली बात यह है कि नबागत आयुक्त विवेक शर्मा अपनी नाक के नीचे संचालित आरटीओ ऑफिस को तथाकथित बिचौलियों की गिरफ्त से छुटकारा दिलवाने एवं एवं पूरे विभाग को सिंडिकेट के चंगुल से मुक्त करने में कहां तक कारगर साबित होते हैं अथवा इसका हिस्सा बनकर तमाशागीर बनकर अपनी आसंदी पर बैठे रहने की औपचारिकता करते हैं ?