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कई सालों से एक ही जगह पदस्थ है उ.म. रेलवे में जनसंपर्क अधिकारी सहित अन्य !

पांच-दस सालों से अधिक समय से एक ही जगह टिके हैं प्रयागराज व झांसी के पीआरओ..

भोपाल/ग्वालियर 15 जुलाई 2025। रेलवे में जनसंपर्क अधिकारी का पद एक संवेदनशील, प्रतिष्ठित एवं उत्तरदायित्वपूर्ण माना जाता है। लिहाजा एक पद पर 3 वर्ष पूर्ण होने के उपरांत अन्यत्र स्थानांतरण के प्रावधान इन पर लागू होना चाहिए जैसा कि सीपीआरओ पर लागू होता है मगर पीआरो के पद पर प्रयागराज में 5 साल से अधिक समय से रागिनी सिंह एवं झांसी में मनोज कुमार 10 साल से अधिक समय से डटे हुए हैं और यही स्थिति तमाम पीआरओ सहित अन्य अधिकारियों के साथ बनी हई है।

PRO रेलवे का चेहरा होता है जो मीडिया, आम जनता, जनप्रतिनिधियों एवं अन्य विभागों के साथ सीधे संपर्क में रहता है इसलिए हर बात का असर सीधे रेलवे की प्रतिष्ठा और छवि पर पड़ता है। कई बार PRO को रेलवे की आंतरिक योजनाओं, दुर्घटनाओं, जांच आदि की गोपनीय जानकारी भी होती है यहां तक कि किसी भी दुर्घटना, हड़ताल, आंदोलन या रेलवे संबंधी नकारात्मक खबर आने पर सबसे पहली जिम्मेदारी भी PRO की होती है।
रेलवे स्थानांतरण (पोस्टिंग) नियम 3.1(3) के प्रावधान अनुसार संवेदनशील पदों पर कार्यकाल की अवधि अधिकतम 3 वर्ष एवं अन्य पदों की यह अवधि अधिकतम 5 वर्ष निर्धारित है। लिहाजा दोनों स्थितियों में ये दोनों जनसंपर्क अधिकारी अपने पद पर नियम विरुद्ध काबिज है। ज्ञात हो कि भारतीय रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष सतीश कुमार ने पिछले वर्ष (अनुमानित) महाप्रबंधक प्रयागराज होने के दौरान स्थानांतरण पॉलिसी को पूरी तरह लागू करते हुए बड़े स्तर पर फेरबदल किया था। फिर आखिरकार ऐसी क्या मजबूरी है जिसके चलते जनसंपर्क अधिकारी सहित तमाम अन्य अधिकारी एवं कर्मचारी स्थानांतरण नियमावली के विपरीत एक ही स्थान पर टिके हुए हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि मीडिया के पारदर्शी प्रबंधन की वजाय ये विभाग के एब छुपाने अथवा अधिकारियों के पक्ष- विपक्ष में माहौल बनाने के हिसाब से मीडिया मैनेज करने में अपनी महती भूमिका निभाते हो !

पीआरओ ऐसे बनाते हैं माहौल..

ज्ञात हो कि अपर मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ महेंद्र यादव तकरीबन 15 सालों से झांसी रेलवे हॉस्पिटल में पदस्थ है। सूत्र अनुसार डॉ यादव मरीजों के साथ दुर्व्यवहार एवं सरेआम गुंडागर्दी के लिए कुख्यात माने जाते हैं। इस क्रम में 2 साल पहले रेलवे यूनियन के दखल पर एक बड़े मामले में कर्मचारी द्वारा इस पर FIR कराई गई और यूनियन द्वारा इसके लगातार दुर्व्यवहार के लिए उच्च अधिकारियों को स्थानांतरण हेतु ज्ञापन दिए गए मगर पीआरओ मनोज कुमार ने डॉक्टर के पक्ष में मीडिया मैनेज करा कर खबरों को अपने मनमाफिक डॉक्टर की तारीफ में प्रकाशित करवाईं जिसके चलते इसका बचाव हो गया।