राष्ट्रीय ध्वज का अपमान – लापरवाही या मानसिकता ? : बृजराज एस तोमर

ग्वालियर-चंबल संभाग आयुक्त का बार-बार जूतों सहित और बिना सिर ढके ध्वजारोहण करना, ग्वालियर कृषि उपज मंडी के सचिव द्वारा उल्टा ध्वज फहरा कर अपमान करना एवं तिरंगा के अनादर की कुछ और घटनाएं केवल लापरवाही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय ध्वज के प्रति सम्मानहीन मानसिकता का प्रतीक है। यह आचरण किसी सामान्य व्यक्ति का नहीं, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था के सर्वोच्च पद पर बैठे उस अधिकारी का है, जिसके आचरण से नागरिकों को प्रेरणा मिलनी चाहिए।

तिरंगा मात्र कपड़े का टुकड़ा नहीं है। यह उन शहीदों की आख़िरी सांसों का प्रतीक है जिन्होंने “वंदे मातरम्” और “भारत माता की जय” कहते हुए अपनी जानें न्योछावर कर दीं। यह उस आज़ादी की याद दिलाता है, जिसकी कीमत हमारे पूर्वजों ने अपने रक्त से चुकाई। जब एक आम नागरिक इसे श्रद्धा से सलाम करता है, तो क्या एक अधिकारी के लिए इतना भी कठिन है कि वह कम से कम तिरंगे के सामने आचरण की मर्यादा निभाए?

भारतीय ध्वज संहिता में जूते उतारने या सिर ढकने को भले ही अनिवार्य न बताया गया हो, परंतु कानून से ऊपर है जनता की भावना और परंपरा। समाज में यह एक स्वाभाविक मान्यता है कि तिरंगे के समक्ष अधिकतम आदर दिखाना चाहिए। और जब वही तिरंगा, जो हमारे गौरव का प्रतीक है, उसके सामने जिम्मेदार अधिकारी बार-बार असम्मानजनक मुद्रा में खड़े हों, तो यह केवल औपचारिक गलती नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता पर चोट है।

अफसोस की बात यह है कि यह कोई पहली बार नहीं हुआ। ग्वालियर संभाग आयुक्त लगातार इस व्यवहार को दोहराते आ रहे हैं। क्या यह अज्ञान है? क्या यह संवेदनहीनता है? या फिर यह अहंकार कि “हम परंपराओं से ऊपर हैं”? किसी भी कारण से हो, यह आचरण न केवल जनभावना के साथ धोखा है, बल्कि तिरंगे की गरिमा के साथ खिलवाड़ भी।

आज आवश्यकता है कि ऐसे उच्चाधिकारी स्वयं आत्ममंथन करें। अगर वे तिरंगे के प्रति भी औपचारिक रवैया अपनाते हैं, तो नागरिक उनसे राष्ट्रसेवा और कर्तव्यनिष्ठा की अपेक्षा कैसे करें? तिरंगे के सामने किया गया असम्मान सिर्फ एक क्षणिक घटना नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की मानसिकता का आईना बन जाता है।

तिरंगा अपमान किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। और यह संदेश केवल नागरिकों को नहीं बल्कि अधिकारियों को भी समझना होगा कि तिरंगे की गरिमा बनाए रखना सिर्फ जनता का नहीं बल्कि सत्ता और प्रशासन का भी पहला कर्तव्य है।

* संपादक की कलम से..