विभाग की कार्रवाई और मंसा सवालों के घेरे में..
भोपाल 25 नवंबर 2025। मध्य प्रदेश में परिवहन चेक प्वाइंटों पर चल रही अवैध वसूली का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। लगातार वायरल हो रहे वीडियोज़ और अख़बारों में प्रकाशित रिपोर्टों ने विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। खुलेआम वसूली, ट्रकों को रोककर ‘सेटलमेंट’, और रकम तय करने की वीडियो फुटेज ने यह साबित कर दिया है कि यह कोई इक्का-दुक्का घटना नहीं, बल्कि सालों से फलता-फूलता एक संगठित नेटवर्क बन चुका है। इन तमाम चेकपॉइंटस मे मुख्य रूप से चिरूला सेंधवा, खवाशा, मोती नाला, नयागांव, चाकघाट, हनुमना, पिटोल, सोयत, पहाड़ी बंदा आदि शामिल है।
कमिश्नर की अच्छी मंशा _ चेक प्वाइंट प्रभारी बने हैं सबसे बड़ी बाधा..
परिवहन आयुक्त विवेक शर्मा द्वारा सिस्टम में पारदर्शिता लाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं—सीसीटीवी निगरानी, ऑनलाइन चालान, डिजिटल रिकॉर्डिंग जैसी व्यवस्थाएँ लागू की गई हैं। लेकिन जमीनी हकीकत इन सुधारों को ठेंगा दिखा रही है। सूत्र बताते हैं कि:कमिश्नर जितनी भी पारदर्शिता लाने की कोशिश कर रहे हैं उसमें सबसे बड़ी बाधा उनके ही चेक प्वाइंट प्रभारी हैं, जिन्हें अवैध वसूली का ‘खून लग चुका’ है।
चेक प्वाइंटों पर पदस्थ कई प्रभारी अपने पुराने गुटों और बाहरी संरक्षण के दम पर खुलेआम वसूली कर रहे हैं। बदलते अधिकारियों का उन पर कोई असर नहीं होता।
शिकायत विभाग भी ‘बफर स्टेट’ की भूमिका में..
विभाग के शिकायत प्रकोष्ठ की भूमिका भी अब सवालों में है।
शिकायत निवारण के प्रभारी उपायुक्त किरण शर्मा को अक्सर कमिश्नर और चेक प्वाइंट प्रभारियों के बीच ‘बफर स्टेट’ के रूप में देखा जाता है।
ट्रांसपोर्टरों और विभागीय सूत्रों का दावा है कि विभाग में जितनी शिकायतें जाती हैं, उसके अनुपात में कार्रवाई नहीं होती। फाइलें बनती हैं, नोटशीट चलती है, पर नतीजा दिखता नहीं। आयुक्त शर्मा की पारदर्शी मंसा एवं नेकनियति और चैक प्वाइंट प्रभारियों की बदनियत के बीच उपायुक्त महोदय संघर्ष करते नजर आते हैं। यह भी माना जा रहा है कि भोपाल का शिकायत विभाग करवाई की बजाय समझाइश इस पर ज्यादा जोर देता है। यह भी आरोप है कि विभागीय एक्शन काग़ज़ों में तेज और जमीन पर कमजोर दिखते हैं।
फील्ड की हकीकत: दिखने वाली कार्रवाई’ बनाम ‘जमीनी वसूली’
वायरल हुए वीडियो यह साबित करते हैं कि चेक प्वाइंटों पर:बिना कारण ट्रक रोकना, तय रकम लेकर रिलीज़ करना, रसीद के नाम पर ‘मैनेजमेंट’ और ओवरलोडिंग का हवाला देकर ‘साइड सेटलमेंट’ बगैरा- बगैरा गतिविधियां खुलेआम होती है।
फील्ड में जमा वसूली की रकम इतनी अधिक बताई जाती है कि कई प्रभारी अपने बैकिंग सिस्टम के कारण निष्कासित होने या हटाए जाने से भी नहीं डरते।
शिकायतों का भी खासा रिजल्ट नहीं दिखता? सूत्रों का कहना है कि कई शिकायतें नीचे के स्तर पर ही दबा दी जाती हैं, ‘इंटर्नल इंक्वायरी’ का नाम लेकर समय निकाला जाता है, कभी-कभी दोषियों को केवल स्थानांतरण का अल्पकालीन औपचारिक दंड मिलता है। गंभीर मामलों में भी विभाग स्तर की कार्रवाई दिखावटी होती है। यही वजह है कि अवैध वसूली की जड़ें और गहरी होती जा रही हैं।
ट्रांसपोर्टर्स में रोष : “सिस्टम बदले बिना कमिश्नर कुछ नहीं कर पाएंगे”
ट्रांसपोर्ट संगठन भी अब खुलकर बोलने लगे हैं- कमिश्नर की नीयत ठीक है, पर नीचे के अधिकारियों की मानसिकता बदले बिना कुछ नहीं बदलेगा। वसूली का नेटवर्क बहुत मजबूत है।
लगातार वायरल होते वीडियो, मीडिया रिपोर्टें और ट्रांसपोर्टर्स में बढ़ती नाराज़गी यह संकेत दे रही है कि अवैध वसूली अब ‘खुला राज’ बन चुकी है। यदि सरकार और विभाग अब भी सख़्त फैसला नहीं लेते, तो यह पूरा सिस्टम पारदर्शिता के नाम पर महज एक विज़ुअल शो बनकर रह जाएगा।
