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 शिक्षा स्वतंत्र एवं समाज आधारित हो, ना कि सरकार की गुलाम.

कर्तव्य की बलि की बेदी पर शहीद हुए छतरपुर जिले के शासकीय हाई सेकेंडरी स्कूल के प्रधानाचार्य को विनम्र श्रद्धांजलि के साथ नमन करते हुए मैं अपनी बात प्रारंभ करता हूं। यह हत्याकांड किसी एक प्रधानाचार्य राजेन्द्र सक्सेना के कत्ल की घटना नहीं बल्कि हजारों साल प्राचीन भारत के संस्कार, संस्कृति एवं सनातन सभ्यता की हत्या है जो कि स्कूल शिक्षा में सरकार, मीडिया, पुलिस एवं अभिभावकों के अनावश्यक हस्तक्षेप का परिणाम है।

विद्यार्थियों की गलती पर उन्हें डांटने व शारीरिक दंडित करने पर प्रतिबंध, अनुशासनात्मक कानूनी कार्रवाई पर प्रतिबंध, छोटे-छोटे प्रकरणों एवं शिकायतें पुलिस द्वारा दर्ज करने का उतावलापन, इन छोटी मोटी बातों को चटकारे लेकर मीडिया द्वारा छापने का शौक और उस पर राजनेताओं का अनावश्यक दखल बगैरा.. के चलते पालकों एवं विद्यार्थियों के मुगालते बढ़ते जा रहे हैं जिसके चलते शिक्षकों का मनोबल निरंतर गिर रहा है। वे अनुशासन के नाम पर कोई भी कार्रवाई करने का साहस दिखाने से भी कतराते हैं। एक तरह से शिक्षक पंगु हो गए एवं विद्यालय असामाजिक गतिविधियों के केंद्र बनने की दिशा में बढ़ते जा रहे हैं क्योंकि जिन शिक्षण संस्थानों में कभी शिक्षक और प्राचार्य सर्व शक्तिमान हुआ करते थे और वे विद्यार्थी, अभिभावकों, समाज और सरकार के लिए श्रद्धा एवं सम्मान के केंद्र होते थे आज इन्हीं विद्यालयों के साथ दोयम और अपमानजनक दर्जे का व्यवहार कतिपय अधिकारियों के अहंकार अथवा व्यवसायपरक अदूरदर्शी नजरिये के कारण हो रहा है‌ जिसके परिणाम साफ तौर पर दिखाई देने लगे हैं।
बच्चों पर कोई दबाव नहीं ,उम्र से अधिक बढ़े हो रहे किशोर जो अपने गुरु की छोटी सी झिड़क भी सुनने को तैयार नहीं है, मोबाइल की रील जैसी जिंदगी जी रहे हैं। समाज शास्त्रियों, शिक्षाविदों एवं अधिकारियों को इस पर विचार करना चाहिए। रिजल्ट का दबाव अब बच्चों एवं अभिभावकों पर नहीं बल्कि प्राचार्य पर होता है। बहुत सी बातें सब बदल चुकी है। शिक्षको के साथ इस प्रकार की बढ़ती घटनाएं ये दर्शाती है कि शासन के नित नए आदेश और निर्देशों का पालन करने के कारण शिक्षको पर कितना मानसिक दबाव है। यदि वे नियमों का पालन न करें तो उन पर विभागीय कार्यवाही होती है और यदि नियमों का पालन करें तो इस प्रकार की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं घटित होती है आखिरकार वह करें तो करें क्या ? शासन को शिक्षकों को इस मानसिक तनाव से मुक्त करने की दिशा में कुछ सार्थक प्रयास करने चाहिए और हम सभी को इस विषय पर एकमत होकर अपने विचारो से शासन को अवगत करवाना चाहिए।

यह मामला मात्र एक विद्यार्थी द्वारा प्रधानाचार्य की हत्या तक सीमित न होकर बल्कि  शासन, प्रशासन एवं अभिभावकों सहित सभी को रसातल की ओर ले जाने वाला है। शिक्षा राष्ट्र के सर्वांगीण विकास का आधारभूत कारक है और शिक्षक इसके मूलभूत कारण है। अतएव इसकी स्वतंत्रता, स्वच्छंदता एवं महत्वता को बरकरार रखना ही हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने एवं सनातन की वकालत करने वाले तमाम राजनेताओं को ये भी समझना होगा कि समाज का सर्वांगीण विकास एवं सनातनी सभ्यता का विस्तार मस्जिद अथवा मजारों को खोद कर नहीं निकलने वाला बल्कि यह  गुरु- शिष्य की परंपरा को विकसित करने वाली स्वतंत्र एवं स्वच्छंद श्रंखलाओं को विलोपित होने से बचाने में निहित हैं और तभी सनातन को जीवित रखना संभावित है..

गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पांए,                       बलिहारी गुरु आपकी जो गोविंद दियो बताए।

लेखक: वरिष्ठ पत्रकार बृजराज सिंह तोमर