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सौरभ शर्मा को जमानत लोकायुक्त की नाकामी का प्रमाण

लोकायुक्त अब पहरेदार नहीं बल्कि हिस्सेदार है: मुकेश नायक

भोपाल 2 अप्रैल 2025। मध्यप्रदेश में सौरभ शर्मा मामला लोकायुक्त और सरकार की मिलीभगत का ताजा उदाहरण बनकर सामने आया है। पूर्व परिवहन आरक्षक सौरभ शर्मा, जिसके पास से करोड़ों रुपये की अघोषित संपत्ति, 52 किलोग्राम सोना और 11 करोड़ से अधिक की नकदी बरामद हुई थी, को लोकायुक्त पुलिस की घोर लापरवाही के चलते विशेष लोकायुक्त अदालत से जमानत मिल गई। यह बात कांग्रेस कार्यालय पर आयोजित प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कांग्रेस कमेटी के प्रदेश मीडिया अध्यक्ष मुकेश नायक ने कही।

उन्होंने कहा कि निर्धारित 60 दिनों में चालान पेश न कर पाने की यह नाकामी कोई संयोग नहीं, बल्कि एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा प्रतीत होती है। इस पूरे प्रकरण में लोकायुक्त की संदिग्ध भूमिका और सरकार की चुप्पी जनता के सामने सच्चाई को उजागर कर रही है।

इस हाईप्रोफ़ाइल मामले की जांच के दौरान लोकायुक्त निदेशक जयदीप प्रसाद का अचानक ट्रांसफर इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि सरकार इस मामले को दबाने में जुटी है। जयदीप प्रसाद, जिन्होंने सौरभ शर्मा के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज कर छापेमारी की थी, को हटाना स्पष्ट करता है कि बड़े रसूखदारों को बचाने के लिए सरकार किसी भी हद तक जा सकती है। लेकिन यह कोई पहला मामला नहीं है। मध्यप्रदेश में लोकायुक्त और सरकार की मिलीभगत से भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने का सिलसिला लंबे समय से जारी है। जहां लोकायुक्त अधिकांश मामलों में भ्रष्टाचारियों को बचाने का काम करती है, वहीं कार्रवाई की इच्छा होने पर भी सरकार अभियोजन की अनुमति रोककर अपराधियों की ढाल बन जाती है।

नायक ने कठोर आरोप लगाते हुए कहा कि लोकायुक्त की कार्यप्रणाली अब एक निकम्मी और नकारा संस्था की हो चुकी है। यह पहरेदार की जगह हिस्सेदार की भूमिका में काम कर रही है। सौरभ शर्मा जैसे हाई-प्रोफाइल मामले में इसकी नाकामी ने साबित कर दिया कि लोकायुक्त पुलिस अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है। लोकायुक्त, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), आयकर विभाग और अन्य एजेंसियों द्वारा सौरभ शर्मा के ठिकानों से बरामद बेशुमार संपत्ति के बावजूद जांच में ढिलाई, जयदीप प्रसाद का ट्रांसफर और निर्धारित समयावधि में चालान पेश न करना इस बात का संकेत है कि सरकार और लोकायुक्त मिलकर अपराधियों को खुली छूट दे रहे हैं। ऐसे में अब जरूरी हो गया है कि लोकायुक्त जैसी भ्रष्ट और औचित्यहीन संस्था को बंद कर दिया जाए।

पीसीसी मीडिया अध्यक्ष ने सरकार से पूछे ये सवाल..

सौरभ शर्मा मामले में चालान पेश न करने की नाकामी के पीछे कौन जिम्मेदार है?
जयदीप प्रसाद का ट्रांसफर क्या इस मामले को दबाने की साजिश का हिस्सा है?
भ्रष्टाचार के अनेक मामलों में अभियोजन की अनुमति रोककर सरकार भ्रष्टाचारियों को संरक्षण क्यों दे रही है?
लोकायुक्त की बार-बार नाकामी के बावजूद इस भ्रष्ट संस्था को क्यों ढोया जा रहा है?

विपक्ष की मांग..

सौरभ शर्मा मामले की निष्पक्ष जांच हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की निगरानी में हो।
जयदीप प्रसाद के ट्रांसफर और समयावधि में चालान पेश नहीं करने के कारणों की विस्तृत जांच हो।
लोकायुक्त संस्था को तत्काल भंग कर इसकी जगह एक स्वतंत्र और प्रभावी संस्था का गठन किया जाए।

मध्यप्रदेश की जनता यह जानना चाहती है कि सौरभ शर्मा को जमानत और भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने के पीछे का सच क्या है? यदि सरकार ने इस मामले में पारदर्शिता नहीं दिखाई और लोकायुक्त संस्था को बंद करने की मांग पर अमल नहीं किया, तो यह साबित हो जाएगा कि उसका भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का दावा महज एक छलावा है। हम चेतावनी देते हैं कि जनता इस अन्याय को बर्दाश्त नहीं करेगी और इसका जवाब सड़कों पर और लोकतंत्र के हर मंच पर देगी।