पीडब्ल्यूडी से रिटायरमेंट के बाद अखिलेश अग्रवाल ने कूट रचना से प्राप्त की एमपीआरडीसी में संविदा नियुक्ति..
भोपाल 28 जुलाई 2025। खुद को तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नाक का बाल बताने वाले अखिलेश अग्रवाल ने लोक निर्माण विभाग में प्रमुख अभियंता के पद पर रहते हुए कितने गड़बड़ घोटाले किए होंगे कि उनका चाल, चेहरा और चरित्र ही बदल गया। इसी फितरत के चलते इसने रिटायरमेंट के बाद भी कूट संरचना के साथ तथ्यों को छुपाते हुए साजिशाना तरीके से मप्र रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन में तकनीकी सलाहकार पद को संविदा के रूप में हतिआया।
सूचना से प्राप्त जानकारी अनुसार दिनांक 20.1.2022 को मध्य प्रदेश सड़क विकास निगम ने अखिल भारतीय स्तर के तकनीकी सलाहकार पद पर भर्ती के लिए विज्ञप्ति जारी की जिसमें आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि 21.2. 2022 थी। इस पद के लिए देशभर से प्रबुद्ध एवं विशेषज्ञों की तुलनात्मक प्रतिस्पर्धा अनिवार्य थी मगर अपनी पत्नी से कुटिल मंत्रणा और निगम के भ्रष्ट अधिकारियों से साथ सांठ-गांठ करके अग्रवाल ने इस प्रतिस्पर्धा को ही समाप्त कर दिया। जिसके अंतर्गत इसने आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि को प्रीपान कराते हुए 17 दिन घटाकर 4.2.2022 करा दी। क्योंकि उसे स्वयं के ज्ञान एवं रोड विकास निगम के सलाहकारों से यह भली भांति ज्ञात था कि अधिकांश आवेदन अंतिम 15 दिनों में ही सबमिट किए जाएंगे और वैसा ही हुआ। इस क्रम में 27.1.2025 को प्रीपोन के लिए सक्षम अधिकारी के बिना हस्ताक्षर का एक फर्जी कोरिजेंडम (क्रमांक 15781) जारी हुआ। जिसके आधार पर आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि 21.2.2022 से घटाकर कर 04.02. 2022 कर दी और इस तरह से पूरे भारतवर्ष के कंपटीशन को समाप्त करते हुए भोपाल तक सीमित कर दिया। स्थानीय स्तर पर प्रकाश चंद्र अग्रवाल जैसे एक- दो लोगों ने आवेदन किए भी मगर उन्हें साम-दाम के जरिए बहला फुसला दिया गया।
आवेदन पत्र में शर्त थी कि आवेदक के नाम पर लोकायुक्त अथवा ईओडब्ल्यू में कोई प्रकरण अथवा जांच दर्ज/ लंबित नहीं होनी चाहिए। इस बाबत आवेदक को शपथ पत्र/ घोषणा पत्र देना वांछित था। अखिलेश अग्रवाल ने कोई भी प्रकरण न होने का झूठा शपथ पत्र पेश किया जबकि इसके विरुद्ध जांच प्रतिवेदन प्रकरण क्र- 227/ 2013 डी ए/ 01/ 2021-22 था। अंत-तो-गत्वा अग्रवाल ने कूट रचना के आधार पर साम- दाम-दंड की नीति से षडयंत्र पूर्वक एमपीआरडीसी में तकनीकी सलाहकार के पद पर संविदा नियुक्ति पा ही ली और इसके बाद भी यह सिलसिला थमा नहीं जिस पर हम अगले एपिसोड में चर्चा करेंगे।
अग्रवाल द्वारा इस संविदा नियुक्ति को पाने के लिए शासकीय दस्तावेजों में छेड़छाड़ करना एवं झूंठा शपथ पत्र देना एक बड़ा आपराधिक षड्यंत्र है जिसके अंतर्गत न सिर्फ अग्रवाल को बल्कि पद का दुरुपयोग करने वाले सड़क विकास निगम के उन षड्यंत्रकारी भ्रष्ट अधिकारियों पर भी 120 बी/भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 13(1) (ए) अंतर्गत कार्रवाई होना चाहिए थी जो इस षड्यंत्र में शामिल रहे मगर करवाई हुई नहीं।
ऐसा क्यों नहीं हुआ- यह एक बड़ा सवाल है, जो साफ तौर पर इस ओर तो इशारा करता ही है कि वह पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के नाक के बाल है साथ ही अंदरुनी अन्य गठजोड़ों का भी संकेत देता है। मगर यहां देखने वाली बात यह होगी कि वर्तमान मोहन सरकार एवं उसके मुख्यमंत्री डॉ यादव अपनी “नई खटिया पर पुरानी टटिया” बिछाते हैं अथवा पुरानी गंदगी को साफ करते हैं !
क्रमशः..