संविदा भर्ती के नाम पर प्रतिनियुक्ति का खेल, झारखंड-यूपी-बिहार के लोगों से छीना गया मध्यप्रदेश का हक़..
भोपाल 28 अक्टूबर 2025। मध्यप्रदेश में सड़क विकास निगम (एमपीआरडीसी) और भवन विकास निगम (एमपीबीडीसी) दोनों ही आज एक ही नटवरलाल नेटवर्क की गिरफ्त में हैं। इस नेटवर्क का सूत्रधार बताया जा रहा है — संजय बर्नवाल, जिसने सड़क विकास निगम में अपनी जड़ें मजबूत करने के बाद अब भवन विकास निगम में भी अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया है।
सूत्रों की माने तो संजय बर्नवाल ने नई निर्माण एजेंसी मध्यप्रदेश भवन विकास निगम (एमपीबीडीसी) की स्थापना प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाई। इस नई एजेंसी की स्थापना के समय मध्यप्रदेश सड़क विकास निगम (एमपीआरडीसी) को ही कार्यकारी एजेंसी (executing agency) बनाया गया था।
इस व्यवस्था के तहत अधिकारियों-कर्मचारियों की भर्ती, कार्यालय सेटअप और आवश्यक सामग्री की खरीद आदि में एमपीआरडीसी की भूमिका प्रमुख रही — और बरनवाल ने इसी का लाभ उठाते हुए अपने झारखंड, बिहार और उत्तरप्रदेश के रिश्तेदारों, सगे-संबंधियों, साढ़ू-बहनोई तक को मध्यप्रदेश के नाम पर नियुक्त करवाया।
संविदा भर्ती में प्रतिनियुक्ति का खेल
शासन से स्वीकृत मध्यप्रदेश भवन विकास निगम के 211 पदों में से उपमहाप्रबंधक (DGM) के 18 पदों (सिविल 16, आर्किटेक्ट 1, डिज़ाइन 1) पर भर्ती हेतु विज्ञापन क्रमांक 14742 दिनांक 07 जनवरी 2022 जारी किया गया था।
विज्ञापन में स्पष्ट रूप से उल्लेख था कि ये सभी पद संविदा आधार पर भरे जाएंगे परंतु वास्तविकता में बिना नए विज्ञापन जारी किए प्रतिनियुक्ति के आधार पर अतिरिक्त नियुक्तियां कर दी गईं।
उदाहरण के तौर पर—अजय श्रीवास्तव को उपमहाप्रबंधक (सिविल), सुनील दगदी को उपमहाप्रबंधक (डिज़ाइन) बनाया गया। बाद में सुनील दगदी को डिज़ाइन से हटाकर सिविल में और विक्रम सोनी को उपमहाप्रबंधक (डिज़ाइन) के पद पर पदोन्नत कर दिया गया। इस तरह शासन से स्वीकृत डिज़ाइन के 1 पद पर दो नियुक्तियां एक साथ कर दी गईं।
मध्यप्रदेश वासियों के पदों पर बाहरी राज्यों के लोग
भर्ती प्रक्रिया में एक और बड़ा खुलासा यह है कि जिन पदों की संख्या केवल 1 थी, वहाँ भी मध्यप्रदेश मूल निवासियों को दरकिनार कर अन्य राज्यों के अभ्यर्थियों को जगह दी गई।
प्रबंधक (मानव संसाधन एवं प्रशासन) के 1 पद पर अमरेश कुमार सिंह, निवासी बलिया (उत्तरप्रदेश), को नियुक्त किया गया। प्रबंधक (वित्त) के 2 पदों में से एक पर सुनील सिंह, झारखंड मूल निवासी, को नियुक्त किया गया जिन्होंने सीहोर में एक नायब तहसीलदार से निवासी प्रमाणपत्र बनवाया — जो सक्षम अधिकारी का नहीं है। कंपनी सेक्रेट्री के पद पर भी यूपी/झारखंड के जांघेला, और पीए टू एमडी पद पर प्रकाश कुमार (गैर-मध्यप्रदेश निवासी) को नियुक्त किया गया।
“तीसरी आंख” अब भवन विकास निगम पर भी
बरनवाल ने एमपीआरडीसी में ही नहीं बल्कि एमपीबीडीसी में भी अपने “तीसरी आंख” वाले नेटवर्क को मजबूत कर लिया है।
जानकारी के अनुसार, उन्होंने फाइनेंस विभाग में अपनी बहनों को, और स्थापना/भुगतान से जुड़े कामों में अपने साढ़ू को लगवाया है। यहां तक कि कार्यालयों में लगने वाले वाहन, सफाई व अन्य अनुबंधित कर्मचारियों की एजेंसियां भी बरनवाल के नजदीकी लोगों की बताई जा रही हैं।
एक्सटेंशन के नाम पर करोड़ों की कमाई
एमपीआरडीसी में वर्ष 2013 में सहायक महाप्रबंधक (तकनीकी) के पद पर 3 वर्ष की संविदा नियुक्ति तय थी।
लेकिन शासन की आंखों में धूल झोंककर 3 वर्ष पूरे होने के बाद भी इन पदों पर कार्यरत लोगों को “एक्सटेंशन” दे दिया गया। सूत्रों का दावा है कि प्रत्येक एक्सटेंशन के एवज में ₹5 लाख तक की आर्थिक लेनदेन की गई जिससे करोड़ों रुपये की अनियमित कमाई हुई।
बर्नवाल का संरक्षण और झारखंड कनेक्शन
इन सभी नियुक्तियों के पीछे एमपीआरडीसी के अधिकारी संजय बरनवाल का नाम सबसे प्रमुख है। बताया जा रहा है कि वे झारखंड के गिरिडीह जिले के मूल निवासी हैं और मध्यप्रदेश शासन के एक वर्तमान अतिरिक्त मुख्य सचिव, जो स्वयं झारखंड से हैं, के नज़दीकी रिश्तेदार हैं। इसी रिश्तेदारी का फायदा उठाकर उन्होंने एमपीआरडीसी से लेकर एमपीबीडीसी तक अपना “बरनवाल साम्राज्य” फैला लिया है।
मध्यप्रदेश के मूल निवासियों के लिए स्वीकृत संविदा पदों पर अन्य राज्यों के लोगों की नियुक्ति, बिना विज्ञापन प्रतिनियुक्तियों के ज़रिए बैकडोर एंट्री और एक्सटेंशन के नाम पर आर्थिक खेल _ यह सब दर्शाता है कि कैसे एक अधिकारी ने शासन की आंखों में धूल झोंकते हुए दोनों निगमों को अपनी “संपत्ति” बना लिया है।
