आज जब दुनिया वैश्विक युद्ध, जलवायु संकट और आर्थिक अस्थिरता जैसी चुनौतियों से जूझ रही है, तब ‘दुनिया के अंत’ की भविष्यवाणियाँ फिर से चर्चा का विषय बन गई हैं। चाहे वो माया सभ्यता की गणनाएँ हों, वैज्ञानिक विश्लेषण हों या धार्मिक ग्रंथों में दिए संकेत — लोग भविष्य को लेकर चिंतित हैं। लेकिन क्या इनमें कोई सच्चाई है?
वैज्ञानिक आधारों पर इसकी कोई पुष्टि नहीं..
नई दिल्ली 30 मई 2025। हाल ही में कुछ प्रसिद्ध भविष्यवक्ताओं और सिद्धांतकारों द्वारा 2025 में दुनिया के अंत की भविष्यवाणीयां की गई हैं, लेकिन इन्हें वैज्ञानिक प्रमाण नहीं माना जाता। ये भविष्यवाणियाँ आमतौर पर आस्था, ज्योतिष, भविष्यदृष्टि या षड्यंत्र सिद्धांतों पर आधारित होती हैं।
नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी
नास्त्रेदमस की कुछ व्याख्याओं में 2025 को भविष्य में वैश्विक संघर्ष (जैसे तीसरा विश्व युद्ध) की संभावित शुरुआत के रूप में देखा गया है। उन्होंने “पूर्व और पश्चिम के बीच युद्ध”, “महामारियों और भुखमरी” और “धरती पर अग्नि वर्षा” जैसी बातें लिखीं जिन्हें कुछ लोग 2025 के परिप्रेक्ष्य में देख रहे हैं।
हालांकि नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियाँ बहुत ही रहस्यमय, गूढ़ और अस्पष्ट होती हैं। इनकी व्याख्या अक्सर मनमाने तरीके से की जाती है।
आधुनिक ‘Psychics’ और भविष्यवादियों की चेतावनियाँ
कुछ समकालीन भविष्यवक्ताओं एवं दिव्यदृष्टाओं ने कहा है कि 2025 के अंत तक एक बड़ा वैश्विक युद्ध होगा, प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में वृद्धि होगी और टेक्नोलॉजिकल संकट (जैसे AI या साइबर अटैक से जुड़ा खतरा) दुनिया को हिला सकता है। लेकिन इन दावों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। ये केवल मानसिक “visions” या निजी व्याख्याओं पर आधारित होते हैं।
षड्यंत्र सिद्धांत (Conspiracy Theories) के अंतर्गत कुछ षड्यंत्रकारी समूहों ने 2025 को The Great Reset का वर्ष बताया है, जब विश्व व्यवस्था पूरी तरह बदल जाएगी।NWO (New World Order) लागू होने का दावा किया गया है। इनके द्वारा एलियन संपर्क या धरती के चुंबकीय ध्रुवों के पलटने जैसी अतिरेकपूर्ण बातें भी कही गई हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या कहता है..
वैज्ञानिक समुदाय इन सिद्धांतों को पूरी तरह अवैज्ञानिक और भ्रामक मानता है। वैज्ञानिक संस्थाओं (जैसे NASA, UN, और CERN) के अनुसार वर्ष 2025 में दुनिया के अंत का कोई संकेत, सबूत या निश्चित खतरनाक घटना नहीं है।
जलवायु परिवर्तन, परमाणु हथियारों और जैविक खतरों की चिंता तो है, लेकिन ये लंबी अवधि की चुनौतियाँ हैं न कि तात्कालिक तबाही की वजह। भविष्यवाणियाँ रोचक जरूर होती हैं मगर ये अक्सर मनोरंजन या डर फैलाने के लिए बनाई जाती हैं।