भोपाल 2 जून 2025। भोपाल रियासत का भारत में विलय एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और ऐतिहासिक घटना थी जो भारत के एकीकरण की प्रक्रिया का हिस्सा थी। लिहाजा इस दिन को “स्मरण दिवस” के रूप में जाना जाता है।
भोपाल रियासत का भारत में विलय 2.06.1949 में हुआ। इस रियासत की स्थापना 18वीं सदी में हुई थी और यह ब्रिटिश भारत की एक मुस्लिम शासित रियासत थी। स्वतंत्रता से पहले भारत में लगभग 565 रियासतें थीं, जिन्हें भारत या पाकिस्तान में से किसी एक में शामिल होना था लेकिन भोपाल के नवाब हमिदुल्ला खान भारत के एकीकरण के दौरान शुरू में भारत में शामिल होने के इच्छुक नहीं थे।
विलय से पहले की कुछ घटनाएँ..
15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली, लेकिन भोपाल रियासत ने भारत में विलय नहीं किया। नवाब हमिदुल्ला खान पाकिस्तान के क़रीबी माने जाते थे और उन्होंने कुछ समय तक स्वतंत्र रियासत बने रहने की कोशिश की। इस फैसले का विरोध रियासत के आम नागरिकों ने किया, जो भारत में शामिल होना चाहते थे।
जन आंदोलन और विरोध..
1948 में भोपाल में भारत समर्थक आंदोलन शुरू हुआ।प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी शंकरदयाल शर्मा ने इसमें सक्रिय भाग लिया और उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
जनता के भारी दबाव और राजनीतिक हालात को देखते हुए, भारत सरकार ने रियासत के विलय की प्रक्रिया तेज की और अंततः नवाब हमिदुल्ला खान ने 30 अप्रैल 1949 को विलय पत्र (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर किए।
यह विलय 1 जून 1949 से प्रभावी हुआ मगर औपचारिक घोषणाएं एवं संबंधित आयोजन 2 जून को किए गए इसलिए इस दिन को भी स्मरण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
विलय के परिणाम..
भोपाल भारतीय संघ का हिस्सा बना और 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद यह मध्य प्रदेश में सम्मिलित हो गया। इससे भारत का भू-राजनीतिक स्वरूप और अधिक एकीकृत हुआ।
इसमें रोचक बात यह थी कि नवाब हमिदुल्ला खान भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी थे फिर भी उन्होंने विलय में देरी की। भोपाल उन गिनी-चुनी रियासतों में से था जहाँ विलय के लिए जन आंदोलन को निर्णायक माना जाता है।